चामुंडा

दष्टत्रला क्षीण देहा च गात्र कर्षणा भी मृद्ड़नी

दिग-बहुक्षम कुशिसा मुसलन चक्र म मार्गाणुम।। 

अंकुशा बिभर्ति खड्गम् दक्षिणेस्वताः

 खेतासा धनुर दंडम कुठारम चलति बिभर्ति ।।

 चामुण्डा प्रेतगा रक्ता बिक्रातस्याही भूषणतः

द्विभुजा प्राकटर्य कृतिका कार्या मनुइन्त्रा ।।

(रूपमन्ड़ना)

चामुंडा को चामुंडी और चर्चिका के नाम से भी जाना जाता है। वह देवी चंडी की शक्ति है। देवी महात्म्य में उन्हें काली का प्रतिरूप माना हैं क्योंकि उनका स्वरूप और आदत चामुंडा के समान है और काली को चामुंडा के रूप में तब माना जाता है, जब वह चंड़ और मुंड को वध कर देती है।

वह मातृका-समूह में हमेशा अंतिम रहती हैं। अन्य मातृकाओ को उनके पुरुष देवताओं की शक्तियों और उनके सम स्वरूप से ही जाना जाता है, केवल चामुंडा ही एकमात्र मातृका है जो एक पुरुष देवता के बजाय महान ‘देवीयो’ की शक्ति है।

जब वह महालक्ष्मी (ऐम), महासरस्वती (ह्रीम) और महाकाली (किल्म) की शक्ति का संयोजन अपने आप में करती हैं, तब वह अपने इस समस्ती रूप में ब्रह्म की प्रकृति के रूप में ब्रह्मा-स्वरूपिणी महादेवी चामुंडा कहलाती  हैं।

उनका स्वरूप:

काले रंग की चामुंडा को मुंडो की माला की पहने हुये या मुंडमाला को यज्ञोपवीत के जैसे  पहने हुये वर्णित किया गया है। उनकी तीन आंखें हैं जो लाल रंग की है, उनके भयानक चेहरे पर शक्तिशाली दाँत हैं, धँसा हुआ पेट, बहुत ही क्षीण शरीर, मुंह विकृत और जीभ बाहर निकली हुई, नशीली आँखें, उलझे, बिखरे हुये मोटे, कड़े, खड़े बाल और और दस हाथ है।  वह उलझे हुए बालो का बहुत बड़ा जटा-मुकुट पहने हुये है, जो साँप या खोपड़ी के आभूषणों से सज्जित हैं। वह शंख से बने कुंडल पहने हुये है। कभी-कभी  वह  सिर पर एक अर्धचंद्राकार चंद्रमा भी पहने दिखाई देती है। उनका वस्त्र बाघ की खाल है और वह हड्डियों, खोपड़ी, नाग और बिच्छू के आभूषण पहनती है जो बीमारी और मृत्यु के प्रतीक हैं। उनका वाहन एक उल्लू या सियार है और उनकी ध्वजा का प्रतीक गरूड़ है।

उनके आसन पर विभिन्न मत है:

      • वे एक अंजीर के पेड़ के नीचे पद्मासन में बैठी है;
      •  वे तीन खोपड़ियों वाले आसन पर बैठती है;
      • मनुष्य के मृत शरीर पर पद्मासन में बैठीहैं;
      • वह एक वह पुरुष के शव या प्रेत पर पैर रख कर खड़ी  है।
चतृर्भुजी:
  • अपने चार हाथों में वह एक डमरू, त्रिशूल, तलवार और पानीपात्र धारण किए हुए हैं।
    उनके एक हाथ में कपाल (खोपड़ी) और दूसरे हाथ में सुला है जबकि अन्य दो हाथ क्रमशः अभय और वरद मुद्रा में हैं।
  • उनके बाएं हाथ में कपाल है, जो मांस से भरा है और दूसरे हाथ में आग है। दाहिने हाथ में सांप और दूसरा हाथ अभय मुद्रा में है।
दसम एवं द्वादश भुजी:
  • विष्णुधर्मोत्तर के अनुसार वे अपने हाथों में : मुसल, कवच, बाण, खड्ग, खेतका, धनुष, दंड, परशु, अभय और वरद मुद्रा धारण किए हुए हैं।
  • पुर्वकर्णगमा के अनुसार: वे डमरू (ढोल), त्रिशूल, तलवार, साँप, खटवांग, वज्र, कटा हुआ सिर, पानीपात्र या कपाल रक्त से भरा हुआ, अग्नि का कलश और अभय या वरद मुद्रा धारण किए हुए हैं।

ॐ पिशाचा ध्वजाये विदमहे,

शूला हस्ताय धीमहि।

तन्नौः काली प्रचोदयात।।

अंजीर या गूलर के पेड़ की प्रतीकात्मकता

‘उदुम्बर’ अंजीर के पेड़ का संस्कृत नाम है। अन्य संस्कृत के नाम हैं, अपुष्पा फला सम्बन्ध, हरितक्ष, और हेमदुग्धा। यह भारत का मूल निवासी है और इसका वैज्ञानिक नाम ‘फिकस रेसमोस’ है। हमारे ऋर्षि मनीषीयों ने अपनी दूरदर्शिता से अंजीर के पेड़ को धार्मिकता से जोड़ दिया कि देवी चामुंडा अंजीर के पेड़ के नीचे बैठी है, जिस से आम आदमी पेड़ को संरक्षित करेगा, जो मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी है। इस पेड़ को संरक्षित क्यों किया जाना चाहिए, यह इसके निम्न औषधीय गुणों के आधार पर निर्णित किया जा सकता है।

पौराणिक संदर्भ
  • वेदों के अनुसार, भगवान विष्णु वृक्ष के अवतार हैं और उदुम्बरा के नाम से जाने जाते हैं। यह पेड़ सौभाग्य का प्रतीक है, समृद्धि लाता है और दुश्मनों को नष्ट करता है।
  • इसकी पवित्र लकड़ी का उपयोग हवन या यज्ञ में किया जाता है। राजा हरीशचंद्र का सिंहासन उदुम्बरा से बना था और राजा भगवान के नाम का जाप करते हुए अपने घुटनों पर चढ़ कर सिंहासन पर बैठते थे। ऐसी मान्यता थी की ऐसे करने से राजा अपने साथ भगवान को भी साथ सिंहासन पर आसीन करते थे।
  • प्राचीन समय में, उप हिमालयी क्षेत्र में एक योद्धा कबीला था, जिसे ‘उदुम्बरा’ के नाम से जाना जाता था, वहाँ से उदुम्बरा वृक्ष के रूपांकनों वाले सिक्के भी मिले थे।
  • बौद्ध ग्रंथों में उदुम्बरा को नील कमल के रूप में जाना जाता है और इसे पवित्र माना जाता है, क्योंकि पूर्व बुद्ध- कनकमुनि (पाली में कनक मना) ने इस वृक्ष के नीचे आत्मज्ञान प्राप्त किया था।
  • गुरु दत्तात्रेय, जिसे त्रिदेव के रूप में जाना जाता है, इस पेड़ में निवास करते हैं, इसलिये उनका मंदिर अंजीर के पेड़ों से घिरा हुआ होता है। गुरु चरित्र के अनुसार यह वृक्ष कलियुग का ‘कल्पतरु’ है।
औषधीय गुण

उदुम्बरा एक प्राचीन औषधीय पौधा है जो पूरा दिन ऑक्सीजन उत्पन्न करता रहता है। पौधे के सभी भागों  से जैसे पत्ते, फल, छाल, जड़. गोंद (लेटेक्स) और रस, विभिन्न औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। अथर्ववेद में कहा गया है कि इसमें त्वचा संबंधी बीमारियों को ठीक करने की शक्ति है और ऋग्वेद कहता है कि यह बवासीर, कीड़े के कारण आंतों के अल्सर के उपचार में प्रभावी है और रक्त शोधक के रूप में काम करता है।

महर्षि चरक ने विभिन्न रोगों के लिए इस वृक्ष से निर्मित जड़ी-बूटियों का वर्गीकरण किया है, जैसे: सूजन-नाशक,ज्वरनाशक, मूत्र विसर्जन को नियंत्रित करने वाला,जीवाणु-नाशक,

लिवर का सुरक्षा कवच, एंटीऑक्सिडेंट, कीमो (कोशिकायें जो कैंसर में बढ़ती हैं) निवारक, फाइलेरिया-नाशक आदि। इस की जड़ी-बूटियों से फ्रैक्चर जल्दी ठीक हो जाते हैं। इससे रक्त, पित्त, जलन, मोटापा और योनि से संबंधित विकारों में राहत मिलती है।

संदर्भ:

The Story Of Matrikas – Hindu Mythology

www.sanskritimagazine.com/indian-religions/hinduism/sapta-matrikas-the-seven-divine-mothers/

kaulapedia.com/en/ashta-matrika/

www. templepurohit.com

https://sreenivasaraos.com/2012/10/07/saptamatrka-part-four/sapta-matrikas-the-seven-divine-mothers/

https://www.hinduscriptures.in/vedic-lifestyle/food/trees/udumbara

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www.Wikipedia.com

Photos: wikipedia

www.DrikPanchang.com

Statue: Chamunda, sculpture in Halebid, India : .Mohonu britannica.com

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