कालीबंगा या कालीबंगन

सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की सबसे प्रचीन सभ्यताओं में से एक हैं। यह सभ्यता पश्चिम में बलूचिस्तान से लेकर पूर्व में मेरठ तक और उत्तर में पंजाब से लेकर दक्षिण में गुजरात के बंदरगाह तक फैली हुई थी। उत्तर-पश्चिम भारत के इस विशाल क्षेत्र में, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के दो प्रमुख स्थल थे, जिन्हें पहली बार 1930 के दशक में सर मोर्टिमर व्हीलर द्वारा खोदा गया था। बाद में, अन्य स्थल भी सामने आए, लेकिन हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में पाए गए सबूतों के विशाल आकार और दायरे के सामने बहुत छोटे थे। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, ये दो विश्व प्रसिद्ध स्थल सीमा पार अब नए पाकिस्तान में चले गये थे। अपनी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का पता लगाने के लिए फिर से एक नए सिरे से प्रयास किये गये ।

हजारों साल पहले, सरस्वती नदी के किनारे एक शहर था। वाणिज्य और मिट्टी के बर्तनों, लोहे और मोतियों के उद्योग के रूप में यहां कृषि फली-फूली। धीरे-धीरे शक्तिशाली नदी ने अपना मार्ग बदल दिया और अंत में अतिक्रमित रेगिस्तान की विशालता के कारण सूख गई। परिवर्तन की हवाओं ने शहर को रेत के नीचे दबा दिया और यह प्राचीन शहर हमेशा के लिए खो गया। अगले चार हजार वर्षों यह टीलों के नीचे ही दबा रहा। फिर 1962 में लगभग 5000 वर्षों के बाद इसे उत्तरी राजस्थान में कालीबंगा नामक गाँव के पास पृथ्वी के गर्भ से  खोदा गया था।

कालीबंगा एक शहर है, जो घग्गर *(प्राचीन नाम सरस्वती) के बाएं या दक्षिणी किनारे पर स्थित है। यह हनुमानगढ़ जिले, राजस्थान की तहसील पीलीबंगा में हैं। यह दृषाद्वती और सरस्वती नदियों के संगम पर त्रिकोण भूमि के रूप में स्थापित था। सिंधु घाटी सभ्यता के प्रागैतिहासिक और पूर्व-मौर्य चरित्र की पहचान सबसे पहले डॉ. लुइगी टेस्सिटोरी ने इस स्थल पर की थी। आजादी के बाद 1952 में अमलानंद धोष नें खुदाई के लिये स्थान चिंहित किया। सन् 1961-1969 में प्रो. बी.बी. लाल और बालकृष्ण थापर ने उत्खनन का काम किया। कालीबंगा का उत्खनित हड़प्पा स्थलों में तीसरा महत्व का स्थान है। कालीबंगा के उत्खनन की रिपोर्ट 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा खुदाई के पूरा होने के 34 साल बाद प्रकाशित हुई थी। जिस से यह पता चला कि कालीबंगा एक सुनियोजित शहर था, जो लगभग 3500 ईसा पूर्व विकसित हुआ था और यह सिंधु घाटी सभ्यता की एक प्रमुख प्रांतीय राजधानी था। कालीबंगा में दो तरह की संस्कृति मिली हैं:

      • पूर्व-हड़प्पा संस्कृति- 3500 -2500 ईसा पूर्व
      • हड़प्पा संस्कृति-      2500 -1500 ईसा पूर्व

*सरस्वती नदी या घग्गर (घग्गर-हकरा नदी)

पूर्व-हड़प्पा काल:

खुदाई से हड़प्पा महानगर का एक ढांचा (ग्रिड लेआउट) प्रकाश में आया, वास्तव में जो शायद भारतीय संस्कृति विरासत का ‘पहला शहर’ था। इसमें तीन टीले शामिल हैं, बीच में बड़ा, पश्चिम में छोटा और पूर्व में सबसे छोटा। इस साक्ष्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है: एक प्रारंभिक-हड़प्पा बस्ती की खोज से संबंधित है, जो हड़प्पा के गढ़ के अवशेषों के ठीक नीचे मिला। इस स्थान पर पूर्व-हड़प्पा और हड़प्पा दोनों के अवशेष साथ में हैं, जिस से इन दोनों संस्कृतियों के बीच के परिवर्तन को देखा जा सकता है।

कालीबंगा पूर्व-हड़प्पा सभ्यता की संरचनाएं:

किला और घर:

इस चरण में, परकोटे का निर्माण सूखी मिट्टी की ईंटों का उपयोग करके किया गया था। इस किले को अलग-अलग कालों में दो बार बनाया गया था। पहले किले की दीवार की मोटाई 1.9 मीटर थी, जिसे दूसरे चरण में पुनर्निर्माण के दौरान बढ़ाकर 3.7–4.1 मीटर कर दिया गया था। दोनों निर्माण-चरणों में ईंट का आकार 20 × 20 × 10 से.मी. था। गढ़ टीला (छोटा टीला) पूर्व-पश्चिम अक्ष पर लगभग 130 मीटर और उत्तर-दक्षिण पर 260 मीटर का समांतर चतुर्भुज है। नगर का नियोजन मोहनजोदड़ो या हड़प्पा की तरह था। विशिष्ट बात यह हैं कि इन घरों की दिशा और ईंटों के आकार हड़प्पा काल से स्पष्ट रूप से भिन्न थे। चारदीवारी के भीतर के घरों को भी उसी आकार की मिट्टी की ईंटों से बनाया गया था जैसा कि किले की दीवार में इस्तेमाल किया गया था। घरों के भीतर की नाली में जली हुई ईंटों के उपयोग किया गया था। चूने के प्लास्टर से ढके चूल्हों और बेलनाकार गड्ढों के अवशेष  भी मिले है। कुछ जली हुई फन्नी या पच्चर के आकार की ईंटें भी मिली हैं।

(फन्नी या पच्चर: V के आकार का धातु या लकड़ी का टुकड़ा जो वस्तुओं को अलग रखने के लिए उनके बीच में फँसा दिया जाता है।)

जोते हुये खेत:

यह संभवत: दुनिया की अब तक की सबसे पुरानी जुताई वाली जमीन है। यह शहर की दीवार के बाहर बस्ती के दक्षिण-पूर्व में स्थित हैं, इसमें आड़े-तिरछे (क्रॉस-ग्रिड) हल चलाने के निशान थे। इस खांचे से यह पता चलता हैं कि पूर्व-पश्चिम की ओर लगभग 30 सेंटीमीटर की दूरी पर हल से रेखा बनाई गई है और पूर्व-पश्चिम की रेखा को काटते हुये दूसरी रेखा उत्तर-दक्षिण की ओर से 190 सेंटीमीटर दूरी पर बनाई गई है। यह प्रथा आज भी प्रचलित हैं। इसे संरक्षित करने के लिए, इस खेत वाले क्षेत्र को खुदाई के बाद फिर से भर कर, इस क्षेत्र को काँक्रीट के खंभे से चिह्नित कर दिया गया है।

लोग तांबे का काम करते थे और मिट्टी के बर्तनों का उत्पादन करते थे। इनकी कोई लेखन प्रणाली नहीं थी

आरम्भिक भूकंप और पूर्व-हड़प्पा संस्कृति का अंत:

पुरातात्विक विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. बी.बी. लाल के अनुसार 2600 ईसा पूर्व के आसपास एक भूकंप आया था, जिसने प्रारंभिक सिंधु सभ्यता को समाप्त कर दिया था। यह शायद सबसे पहला पुरातात्विक रूप से दर्ज भूकंप है। 2900-1800 ईसा पूर्व के दौरान खादिर के धोलावीरा में सिंधु घाटी सभ्यता को प्रभावित करने वाले कम से कम तीन पूर्व-ऐतिहासिक भूकंपों की पहचान की गई है। खुदाई के चरण से यह पता चलता हैं कि पांच अलग संरचनात्मक स्तरों पर गाद की 1.6 मीटर  परतें जमा है और अंत में शायद अंतिम भूकंप से पूरी सभ्यता नष्ट हो गई। इसको 2600 ईसा पूर्व के आसपास छोड़ दिया गया था, लेकिन इसे जल्द ही हड़प्पा वासियों द्वारा फिर से बसाया गया था ।

हड़प्पा काल:

हड़प्पा काल के दौरान, बसावट का संरचनात्मक साँचा बदल गया था। अब स्पष्ट रूप से दो अलग-अलग हिस्से थे: पश्चिम में किला और पूर्व में निचला शहर था। निचला शहर पूर्व के समतल प्राकृतिक मैदान में था। जबकि गढ़ निचले शहर के ऊपर स्थित था जो कि उच्च प्रतिष्ठता का द्योतक था, इस से यह ज्ञात होता हैं कि समाज का वर्गीकरण हो चुका था। गढ़ के परिसर के चारों ओर एक समांतर चतुर्भुज परिकोटा था, जिसका निर्माण मिट्टी की ईंटों से किया गया था। जिसमें दो समान लेकिन अलग-अलग तरह के साँचे वाले हिस्से बने थे। गढ़ के दक्षिणी भाग में लगभग पाँच से छह बड़े चबूतरे थे, जिनमें से कुछ का उपयोग शायद धार्मिक कार्य  या अनुष्ठान के लिए किया जाता होगा। गढ़ के उत्तरी भाग में अभिजात वर्ग के आवासीय भवन थे। हड़प्पावासियों का कब्रिस्तान गढ़ के पश्चिम में दक्षिणी पश्चिमी कोण में स्थित था।

निचले शहर को भी परिकोटे के भीतर बसाया गया था। निचले शहर के भीतर, उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम में चलने वाली सड़कों का योजनाबद्ध जाल बिछाया गया था, जो क्षेत्र को खण्डों (ब्लॉकों) में विभाजित करता था। घरों का निर्माण मिट्टी की ईंटों से किया गया था, पक्की ईंटों को नालियों, कुओं, चौखट आदि तक ही सीमित रखा गया था।

महानगर के उपरोक्त दो प्रमुख हिस्सों के अलावा, एक तीसरा भी था, जो निचले शहर के पूर्व में 80 मीटर की दूरी पर स्थित था। इसकी संरचना मामूली थी, जिसमें चार से पांच ‘अग्नि-वेदियाँ’ थीं। ऐसा प्रतीत होता हैं कि ये अग्नि-वेदियाँ कर्मकांड के प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल की जाती होगी।

कालीबंगा हड़प्पा चरण की संरचनाएं:
अग्नि वेदियाँ

कालीबंगा में, अनेक अग्नि वेदियाँ मिली है, जिस से यहअनुमान लगाया जाता हैं कि ये वेदियाँ अग्नि पूजा से संबंधित कर्मकांड करने का उद्देश्य से बनाई गई हैं। यह एकमात्र सिंधु घाटी सभ्यता स्थल है जहाँ “माँ देवी” की पूजा का कोई सबूत नहीं है। यह अग्नि-वेदियाँ तीन समूहों में पाई गई हैं: गढ़ में सार्वजनिक वेदियाँ, निचले शहर में घरेलू वेदियाँ, और तीसरे अलग समूह में सार्वजनिक वेदियाँ। अग्नि वेदियों से थोड़ी दूरी पर, एक कुआँ और स्नान स्थल के अवशेष पाए गए, जो यह संकेत देते हैं कि स्नान अनुष्ठान का एक हिस्सा था।

    • परकोटे वाले गढ़ परिसर के भीतर, दक्षिणी आधे हिस्से में मिट्टी की ईंटों के कई (पांच या छह) उठे हुए चबूतरे थे, जो परस्पर गलियारों से अलग किये गये थे। इन चबूतरे पर चढ़ने के लिये सीढ़ियां बनी हुई थीं।
    • अंडाकार अग्निकुंडों में जली हुई ईंटें पाई गई, इनमें टेराकोटा का बना हआ एक पाली पीड़म या बलि पद है।
    • निचले शहर के घरों में भी इसी तरह की वेदियाँ हैं। इन अग्निकुंडों में जले हुए कोयले के अवशेष मिले हैं।
    • कुछ अग्निवेदियों में पशुओं के अवशेष मिले हैं, जो पशु-बलि की संभावना का संकेत देते हैं।
निचला शहर

निचला शहर भी समांतर चतुर्भुज आकार में मिट्टी की ईंटों (40 × 20 × 10 से.मी.) से बना हुआ है और यहाँ पर तीन या चार तरह के संरचनात्मक चरण मिलते है। इस शहर  के उत्तर और पश्चिम में द्वार थे। हालांकि अब केवल निशान ही बचे हैं।

सड़कें: अन्य हड़प्पा शहरों की तरह कालीबंगा की सड़कें अत्यंत ही विनियमित थी। सड़कों और गलियों की चौड़ाई सटीक रूप से निर्धारित अनुपात में थी:मुख्य सड़कों के लिए 7.2 मीटर से लेकर संकरी गलियों के लिए 1.8 मीटर तक। हादसों को रोकने के लिए गलियों में फेंडर पोस्ट लगाए गए हैं।

अब तक 8 मुख्य सड़कों की पहचान की गई है, जिनमें 5 उत्तर-दक्षिण और 3 पूर्व-पश्चिम हैं की ओर जाती हैं। पूर्व-पश्चिम की कुछ और सड़कों का बिना खुदाई वाले अवशेषों में दबे होने की उम्मीद है। पूर्व-पश्चिम की तीन सड़को में दूसरे नंबर वाली सड़क, उत्तर-पूर्वी सड़कों में से पहले नंबर वाली सड़क के छोर (जो नदी की ओर था) पर मिलने के लिए घुमावदार रूपरेखा में चलती दिखाई देती है, जहां एक प्रवेश द्वार भी बना हुआ था। यह सड़क सीधी सड़कों के जाल में एक विसंगति थी। विशिष्ट आवास परिसरों से जुड़ी कई गलियाँ थीं।

दूसरे संरचनात्मक स्तर पर सड़कों को मिट्टी की टाइलों से बिछाया गया था। घरों से निकलने वाली नालियों को सड़कों के नीचे गड्ढों में खाली कर दिया जाता था। इस सब की योजना बनाने और उसे विनियमित करने के लिए अवश्य कुछ केंद्रीय प्राधिकरण होना चाहिए। इस तरह की नगर-योजना समकालीन पश्चिम एशिया में अज्ञात थी।

आवास: जिन्हें अन्य हड़प्पा शहरों के नगर नियोजन के नक्शों का अनुसरण करते हुये कालीबंगा के आवास भी शतरंज की बिसात की तरह बने हुये हैं। सभी घर कम से कम दो या तीन सड़कों या गलियों में खुलते हैं। प्रत्येक घर में एक आंगन और तीन तरफ ६-७ कमरे थे, कुछ घरों में एक कुआँ भी था। एक घर में छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ थीं। मकान 30 × 15× 7.5 से.मी. मिट्टी की ईंटों से बने थे। ये ईंटें किले की दीवार और दूसरे संरचनात्मक चरण में उपयोग किए जाने वाली ईंटों के समान ही हैं। जली हुई ईंटों का उपयोग अग्नि-वेदी के अलावा नालों, कुओं, स्नानागारों और चौखटों में किया गया था। कमरों के फर्श पीसी हुए महीन मिट्टी से बनाए गए थे। कही-कही फर्श पर मिट्टी की ईंटों या टेराकोटा की ईंटों को बिछाया गया था। एक घर में ज्यामितीय डिजाइनों से सजी जली हुई टाइलों से बने फर्श भी मिले हैं।

समाधि या दफन प्रणाली

हरप्पन लोगों का शवाधान स्थल या कब्रिस्तान गढ़ से 300 गज की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं। यहां 34 कब्रें मिली हैं जिनसे यह मालुम होता हैं कि यहाँ शवों को दफनाने की तीन प्रणालियाँ थी। वे निम्न हैं:-

आयताकार या अंडाकार गड्ढे में समाधि:  कुछ कब्रों में मिट्टी के बर्तनों के बीच, शव को उत्तर की ओर सिर कर के सीधा लिटा कर, गड्ढों में मिट्टी भर के दफनाना गया था। वही कुछ कब्रों के गड्ढों को नहीं भरा गया था। एक गड्ढे में इन वस्तुओं के बीच एक तांबे का दर्पण मिला। कुछ कब्रों में मनके, शंख से बनी वस्तुयें भी मिली हैं लेकिन कोई शव नहीं मिला। एक कब्र, अंदर से प्लास्टर की गई मिट्टी की ईंट की दीवार से घिरी हुई थी। एक बच्चे की खोपड़ी में छह छेद मिले। इन कब्रों से कई प्राचीन जीवाश्म साक्ष्य अध्ययन के लिये (*पैलियो-पैथोलॉजिकल) एकत्र किए गए हैं।

*पैलियो – का अर्थ है प्राचीन, प्रारंभिक, प्रागैतिहासिक, आदिम, जीवाश्म।   पैथोलॉजी-बीमारी का अध्ययन।

 

हड़प्पा सभ्यता का अंत

समय के अंतराल में यह फलती फूलती सभ्यता कहीं अंधेरे में गुम हो गई। एक इतालवी जलविज्ञानी रॉबर्ट राइक्स और उनके भारतीय सहयोगियों ने यहाँ पर शोध करके पाया कि कालीबंगा को नदी के सूख जाने के कारण छोड़ दिया गया था। प्रो. बी.बी. लाल (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सेवा निवृत्त महानिदेशक) इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए कहते हैं: “रेडियोकार्बन तिथियां दर्शाती हैं कि कालीबंगन में परिपक्व हड़प्पा बस्ती को 2000-1900 ईसा पूर्व के आसपास छोड़ दिया गया था और जैसा कि हाइड्रोलॉजिकल साक्ष्य इंगित करता है, यह परित्याग सरस्वती (घग्गर) के सूखने के कारण हुआ।“

आधुनिक कालीबंगा

कालीबंगा या कालीबंगन का अर्थ है “काली चूड़ियाँ” (हिंदी में चूड़ियों का पर्यायवाची “बंगन” हैं) हैं। कुछ मील की दूरी पर पीलीबंगा नामक रेलवे स्टेशन और टाउनशिप है, जिसका अर्थ है पीली चूड़ियाँ।

पुरातत्व विभाग  ने १९६१-६९ के दौरान उत्खनित सामग्रियों को यहां संग्रहीत करने के लिए १९८३ में कालीबंगा में एक पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना की। एक दीर्घा में पूर्व-हड़प्पाकालीन खोज प्रदर्शित होती है, जबकि हड़प्पाकालीन खोज अन्य दो दीर्घाओं में प्रदर्शित होती है। हालांकि कालीबंगा पाकिस्तान में चले गये के अपने समकक्षों जितना बड़ा नहीं था, फिर भी सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख स्थल बन गया हैं। लेकिन प्रशासन की उपेक्षा के कारण आज कालीबंगा का यह प्रमुख स्थल न केवल पूरी तरह से नष्ट हो गया है बल्कि भुला भी दिया गया है।

नोट:  टेरीकोटा की वस्तुयें,आभूषण, मुहरऔर सील आदि अन्य जानकारी के लिये “पुरातात्विक महत्व-हनुमानगढ़” Heritage of Hanumangardh देखें।

पता:

कालीबंगा, हनुमानगढ़,
राजस्थान 335801

पर्यटक स्थल खुलने के दिन:

सोमवार से रविवार: 9:00 पूर्वाह्न – 5:00 अपराह्न
शुक्रवार: बंद

कैसे पहुँचे:

कालीबंगा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से 661 कि.मी की दूरी पर है और निकटतम रेलवे स्टेशन 205 कि.मी दूर बीकानेर में है।

संदर्भ:

Image: wikipedia commons

https://www.rajras.in/kalibangan-ancient-civilization-rajasthan/

http://asijaipurcircle.nic.in/Excavations.html

http://www.nationalmuseumindia.gov.in/prodCollections

https://en.wikipedia.org/wiki/Kalibangan

https://www.tourism-of-india.com/

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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