चामुंडा दष्टत्रला क्षीण देहा च गात्र कर्षणा भी मृद्ड़नी दिग-बहुक्षम कुशिसा मुसलन चक्र म मार्गाणुम।। अंकुशा बिभर्ति खड्गम् दक्षिणेस्वताः खेतासा धनुर दंडम कुठारम चलति बिभर्ति ।। चामुण्डा प्रेतगा रक्ता बिक्रातस्याही भूषणतः द्विभुजा प्राकटर्य कृतिका कार्या…