श्री ब्राह्मणी माता-रतनगढ़

रतनगढ़ चुरू जिले की एक तहसील और चूरू से 50 कि.मी. की दूरी पर बीकानेर डिवीजन में आता हैं। लूनच, नोसरिया, संगसार, लधासर, गोरिसार गांव हैं और राजलदेसर, फतेहपुर, हरसावा पास के शहर हैं। डाक प्रधान कार्यालय रतनगढ़ है और पिन कोड 331022 है।

रतनगढ़ का इतिहास:

रतनगढ़ को राजस्थान की काशी के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन काल में यह जांगल देश औरबागड़ देश  का हिस्सा था। रतनगढ़ तहसील का इतिहास और इसकी संस्कृति अति प्राचीन है।

राम के पुत्र कुश के वंशज कुषाण शासक:

रतनगढ़ का पहला नाम कोहलासर था। जो कोहला नाम के कसवा जाट ने 11 वीं शदी में बसाया था। कसवा रतनगढ़ और चुरू के शासक थे। कसवा वास्तव में कुषाण का ही परिवर्तित नाम है। प्रथम सदी ईस्वी में कुषाण साम्राज्य का उदय काबुल में हुआ था। कुषाण शासक अपने को राम के पुत्र कुश के वंशज मानते हैं।

कुवां पूजन की प्रथा:

ऋग्वेद में  कुसावा नाम की एक नदी का उल्लेख है जिसे बाद में कुनार नाम से जाना गया। सीसिथियन जाटों ने ही कुनार, कुमल, कुररम, कुनार, कुनिहार आदि नदियों को नाम दिये। ये नदियां पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में हैं। सीथियन जाटों की भाषा में ‘कु’ का अर्थ ‘पानी’ होता था। इसीलिए जाटों में जन्म के समय कुवां पूजन की परंपरा है। यह परंपरा राजस्थान के कई क्षेत्रों में आज भी प्रचलित हैं। चूंकि राजस्थान में जल निकाय या नदियाँ नहीं हैं, इसलिए कुआँ पानी का प्रतीक है और इसे पवित्र माना जाता है। कनिष्क (127-162 ई.) ने अपना राज्य विस्तार मथुरा तक कर लिया था। कुषाण शासन का अंत होने पर यहाँ यौधेय शासक बन गए, जो कि समय के अंतराल में परिवर्तित हो कर जोहिया हो गया। राठौड़ों के आने के पहले ये बीकानेर संभाग के शासक थे। कसवां जाटों का मुखिया कंवरपाल 19 अगस्त 1068 को सीधमुख आया था उसकी 400 गाँवों पर उसकी सत्ता थी। कंवरपाल के बाद कोहला सीधमुख के शासक हुए। कोहला ने ही कोहलासर बसाया।

12वीं सदी के अंत में सिहाग वंश ने पल्लूकोट और ददरेवा के आस-पास कुल की भूमि पर आधिपत्य जमा लिया। रतनगढ़ उनके अधीन था। रतनगढ़ के पास  सिहाग और राठौड़ों में संघर्ष हुआ और सिहाग जाटों का जब यहाँ से स्वामित्व समाप्त हो गया तो राठौड़ नरेश सूरत सिंह ने अपने पुत्र रतन सिंह के नाम पर रतनगढ़ रखा।

सती स्मारक शिलालेख:

डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार राठौड़ों का संवत 1309 (1252 ई.) का सती स्मारक शिलालेख एक प्राचीन मठ में रतनगढ़ रेलवे जंक्शन के निकट हुडेरा जोगियां का बास में मिला हैं। यह स्मारक लगभग डेढ़ फुट लम्बा और पौन फुट चौड़ा है। इस पर हाथ में खांडा या तलवार लिए एक घुडसवार की प्रतिमा बनी हुई है और उसके आगे एक स्त्री हाथ जोड़े खड़ी है। इसके नीचे एक लेख है जिसका आशय यह है कि संवत 1309 वैशाख सुदी 1 को राठौड़ नरहरिदास की स्त्री पोहड़ (भाटी जाट की एक शाखा) किसना यहाँ सती हुई।

इस शिलालेख से यह सिद्ध होता है कि राठौड़ शाखा के प्रमुख प्रवर्तक, रावसीहा का समय स.1330 (1273 ई.) माना जाता हैं लेकिन राठौड़ों का प्रभुत्व इससे भी अधिक प्राचीन है। राठौड़ों के वैवाहिक सम्बन्ध भाटी जाटों से होते थे और सती प्रथा का प्रचलन था।

रतनगढ़ में दो ब्रह्माणी माता जी मंदिर है: ब्रह्माणी मंदिर और पल्लू वाली माता मंदिर, जो 1 मिनिट की दूरी पर है।

 

पता:

पल्लू वाली माता- रतनगढ़,
रतनगढ़, राजस्थान 331022
फोन: 094622 28898

  • रतनगढ़ कैसे पहुंचें
  • रेल मार्ग:
    • रतनगढ़ पश्चिम रेल मार्ग स्टेशन
  •  सड़क मार्ग:
  • जयपुर- रतनगढ़: NH52 और NH 11 / NH58: 3 घंटे 5 मिनट (194 कि.मी.)
    इस रास्ते पर टोल हैं।

  • जोधपुर – रतनगढ़: NH62 और NH58 -5 घंटे 41 मिनट (300 कि.मी.)
    इस रास्ते पर टोल हैं।

  • पिलानी- रतनगढ़: एमडीआर 82 और एमडीआर 30 – 2 घंटे 50 मिनट (141 कि.मी.)

रतनगढ़: राम चन्द्र पार्क रोड -श्री पल्लू वाली ब्राह्मणी माता मंदिर तक : 11 मिनट (3.9 किमी)

  • रतनगढ़ में बस स्टॉप
        • रतनगढ़ बस स्टैंड
          चूरू- 331022: 7.0 के.एम.
        • कांसुजिया की ढाणी बस स्टैंड
          चूरू- 331022: 7.0 के.एम.
        • गोगासर बस स्टैंड :
          आरजे एसएच 7; गोगासर- 331504: 16.4 कि.मी.
        • गांधी चौक बस स्टेशन
        • गांधी चौक रोड; राजलदेसर -331802: 16.4 कि.मी.

संदर्भ:

        • photo Hemant  Sharma & N.  Sharma
        • Jatland.com
        • ठाकुर देशराज
        • डॉ. गोपीनाथ शर्मा

अनुरोध:

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