श्री ब्राह्मणी माता फलौदी-मेड़ता रोड
बाण तूँ ही ब्राह्मणी, बायण सु विख्यात |
सुर सन्त सुमरे सदा, सिसोदिया कुल मात ||
श्री ब्राह्मणी माताजी मंदिर का इतिहास
नागौर जिले के गाँव मेड़ता रोड (फलौदी) में स्थित माँ ब्रह्माणी मंदिर, 11वी सदी का प्राचीन मंदिर हैं, (जिसे फलवर्धिका देवी के नाम से जाना जाता था) उसका अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं। राजा नाहड़ राव परिहार ने जिस समय पुष्कर राज में ब्रह्मा मंदिर की स्थापना की उसी समय उन्होंने मारवाड़ में 900 तालाब, बावड़ी तथा छोटे-छोटे बहुत सारे मंदिर बनवाए थे। उस समय फलौदी गाँव में ब्रह्माणी माता का एक कच्चा थान (मंदिर) बना हुआ मौजूद था। राजा ने उसे एक पक्के मंदिर का रूप दे दिया। उसके पास ही तालाब और एक बावड़ी भी खुदवाई, जो आज भी मौजूद हैं ।
वि. सं. 1013 में मंदिर में ब्रह्माणी माताजी की प्रतिष्ठा के लिए रत्नावली (रुण) नगरी से भोजक केशवदासजी के पुत्र लंकेसरजी को लेकर यहां आये और मंदिर की प्रतिष्ठा कराई तथा भोग के लिए उस वक्त राजा नाहड़ राव ने 52 हजार बीघा जमीन माताजी के नाम अर्पण की, जिसका संपूर्ण अधिकार लंकेसरजी को सौपा। जिस वक्त राजा ने मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा कराई, उसी दौरान एक तोरणद्वार यादगार के रूप में मंदिर के बाहर बनवाया, जो कि प्राचीन संस्कृति एवं कलात्मकता का एक अद्भुत नमूना था, जो 9 चरणों में बँटा हुआ एक विशाल स्तम्भ दिखाई देता था । जिसकी ऊंचाई उस वक्त 85 फुट थी, बाद में इस तोरण-द्वार का उपयोग विशाल द्वीप स्तम्भ के रूप में किया जाने लगा । आस-पास के इलाके के राजा-महाराजा अपने किलों की ऊपर खड़े होकर नवरात्रि पर्व के समय माताजी की ज्योति के दर्शन करते थे, जो इस तोरण द्वार के सबसे ऊपरी हिस्से पर दर्शनार्थ हेतुं रखी जाती थी।
मंदिर की प्रतिष्ठा होने के एक वर्ष बाद, वि.सं. 1014 को भोजक केशवदासजी, किरतोजी, बलदेवजी, सुमेरजी आदि ने मिलकर वैशाख सुदी तीज सोमवार को कुलदेवी फलवर्धिका या फलदायनी के नाम से फलौदी नाम का गाँव बसाया, जो आज मेड़ता रोड कहलाता हैं ।
वि. सं. 1121 में राजा जीवराज जी परिहार राज करते थे। उनकी आज्ञा ले कर शुभकरणजी ओसवाल ने माताजी की जमीन पर पाशर्वनाथ जी का मंदिर बनवाया और पाशर्वनाथ मंदिर की तरफ से माताजी के मंदिर को किराया दिया जाता था। वि. सं. 1200 में श्री विमलशाह ने ब्रह्माणी माताजी की जमीन पर शांतिनाथ जी का मंदिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा करवा कर सेवा के लिए ब्रह्माणी माताजी के ही पुजारियों को नियुक्त किया ।
वि. सं.1351 में में यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध व् सुदृढ़ स्थिति में था। नवरात्रि पर्व के समय राजा-महाराजाओं द्वारा स्वर्ण एवं रत्न-जड़ित पोशाकें माताजी के श्रृंगार हेतुं भेजी जाती थी, जिससे यहां अत्यधिक मात्रा में धन-संपदा एकत्रित हो चुकी थी । इसी वजह से मुगल शासक अलाउद्दीन खिलजी ने यहाँ आक्रमण करके बहुत लूटपाट की जिसमे वो बहुत सारी रत्न जड़ित माताजी की पौशाकें और आभूषण ले जाने में सफल रहा। इस आक्रमण के दौरान लूटपाट के विरोध में पुजारी श्री धनजी जाँगला के पुत्र बनराज जी, विष्णु जी तथा दोपा जी लड़ते हुए शहीद हुए थे ।
वि. सं. 1633 में दिल्ली के बादशाह अकबर की फौज गुजरात पर चढ़ाई करने जा रही थी तो फलौदी (मेड़ता रोड) होकर गुजरी । इस फ़ौज का सूबेदार कालेखाँ था, जिसकी नजर दूर से ही मंदिर के पास बने कलात्मक ऊँचे भव्य तोरण पर पड़ी जो 85 फुट ऊंचा था। कालेखाँ ने सबसे पहले इसे ही नष्ट करने का आदेश दिया। कालेखाँ स्वयं मंदिर के अंदर गया तथा मंदिर जिन प्रमुख चार कलात्मक खंभो पर खड़ा था उनको तुड़वाना शुरू किया। जब तीनो खंभे तोड़े जा चुके थे, तब कालेखाँ ने ब्रह्माणी माताजी की मूर्ती तोड़ने की नीयत से गृभगृह में प्रवेश करना चाहा तो उसी दौरान एक बहुत बड़ा चमत्कार हुआ ।
ब्रह्माणी माताजी स्वयं प्रकट होकर क्रोधित हो उठी और उन्होने कालेखाँ को जहाँ खड़ा था वही उसके पाँवो को जमीन से चिपका दिया । काले खाँ अपनी पूरी ताकत लगाकर हार गया लेकिन अपने पाँवों को जमीन से नही छुड़ा पाया, तब उसने हारकर माँ ब्रह्माणी के चरणों में अपना शीश झुकाकर क्षमा मांगी और अपने पैर जमीन से छुड़ाने की प्रार्थना की। ब्रह्माणी माता ने उसे क्षमा कर दिया और कहा कि अपने मुगल सैनिकों को मार-काट और लूटपाट करने से तुरंत रोक दे। तब काले खाँ के आदेश ने लूटपाट बन्द करने आदेश दिया लेकिन तब तक तोरण द्वार का मात्र एक हिस्सा ही बचा रह गया था और मंदिर के अंदर भी एक स्तम्भ ही सुरक्षित रहा, जो आज भी स्थित हैं । काले खाँ ने वचन दिया कि आज के बाद कोई भी मुगल शासक को यहां लूटपाट नही करेगा। ई. सन 1947 में जब मेड़ता रोड़ से होकर रेल लाइन निकाली गई तो उस जमीन के एवज मे रेल्वे द्वारा लाखों रुपये का मुआवजा मंदिर के नाम जमा किया ।
नवरात्रि पर्व की विशेषता
देशभर में नवरात्र का सभी देवी मंदिरों में विशेष महत्व होता है। लेकिन नवरात्र में नागौर जिले के मेड़ता रोड में स्थित मां फलौदी ब्रह्माणी माताजी के स्थान का विशेष महत्व है, क्योंकि यहां चैत्र व आसोज माह में अमावस्या के दिन घट स्थापना के साथ ही नवरात्रा पर्व शुरू हो जाते है। दूसरा नवरात्रि पर्व के दौरान यहां एक अद्भुत एवं चमत्कारिक प्रथा प्रचलित हैं, जिसको स्थानीय भाषा में ‘दुआ’ के नाम से जाना जाता हैं जो कि पूरे भारत में सिर्फ यही पर प्रचलित हैं। वर्ष में दो बार होने वाले नवरात्रि पर्व, चैत्र वदी अमावस से प्रारम्भ होकर सप्तमी तक चलते हैं द्वितीय नवरात्रि पर्व आसोज वदी अमावस से लेकर सप्तमी तक चलते हैं। इस दौरान अमावस से लेकर छठ तक किसी भी प्रकार का भोग व प्रसाद माताजी को नही चढ़ता तथा सप्तमी के दिन ब्रह्माणी माताजी को भोग लगता हैं ।
नवरात्रि पर्व के समय जो भक्तगण ब्रह्माणी माताजी की उपासना एवं भक्ति करने की इच्छा रखते हैं, उन्हें ब्रह्माणी माताजी की अदृश्य अनुमति से ही गृभगृह में प्रवेश मिलता हैं। गृभगृह में प्रवेश करने के बाद, उन भक्तों को घर नहीं जाने दिया जाता है। उन्हें 7 दिन तक मंदिर में रहकर भोजन, दूध-फल आदि के बिना ही मात्र चरणामृत के सहारे ही उसे 7 दिन तक रहना पड़ता है। चाहे वो भक्त 8 वर्ष का बालक हो या 60 वर्ष का । नवरात्रि में एक दिन में 4 आरती होती हैं- सुबह 4 बजे, 10 बजे, शाम 7 बजे और फिर रात 10 बजे। महिलाओं को मंदिर में रखे नगाड़ों तक ही आने की अनुमति है।
पंचमी के दिन रात को 10 बजे की आरती में जिस भक्त के अंतर मुख से शाकद्वीपीय ब्राह्मण जाति के व्यक्ति का नाम उच्चारित होता है। जिसका अर्थ यह हैं कि उस व्यक्ति के घर का ही प्रथम भोग सप्तमी के दिन माता को लगता है और ब्रह्माणी माताजी के भक्त जो पिछले 7 दिनों से मात्र चरणामृत (जल) के सहारे रहे हैं अब वे सब उस व्यक्ति के घर जा कर प्रसाद ग्रहण करेंगे, चाहे वह भक्त अमीर हो या गरीब। इस प्रकार इस दुआ की परंपरा की प्रक्रिया सम्पन्न की जाती हैं, इस मंदिर में भारत के कोने-कोने से भक्त आते हैं और माँ के दरबार में मन मांगी मुरादे पूरी पाते हैं ।
दो ब्रह्माणी माताजी की मूर्तियों का रहस्य
हमे मंदिर मे ब्रह्माणी माताजी की पास-पास एक सी दो मूर्तियां दिखाई देती हैं, एक प्राचीन मुख्य मूर्ति हैं जो कभी कही से मामूली खंडित हो गयी थी । वर्षों पूर्व एक भक्त ने हूबहू प्रतिमा बनवाकर मूल प्रतिमा को गृभगृह में रखवा दिया और नई प्रतिमा स्थापित करवा दी थी। माताजी को यह बात रास नही आई, आखिर उन्होने अपनी एक महिला भक्त निम्बाहेड़ा निवासी श्रीमती शांतिदेवी, धर्मपत्नी स्व. शंकरलाल जी ओझा को दर्शन देकर मेड़ता रोड आने का आदेश दिया। माताजी का आदेश मान कर, वे चैत्र मास की सप्तमी सन 1981 में को अपने पुत्रों को लेकर मेड़ता आई। जैसे ही शांति देवीजी माँ ब्रह्माणी के मंदिर परिसर में पहुँची, उनमें माताजी का आवेश हुआ और उन्होने आदेश दिया कि मेरी मूर्ती को गृभगृह से निकाल कर मंदिर में पुनः उसी स्थान पर इसी समय स्थापित करों । माँ का विकराल रूप देख उसी वक्त मंदिर के पुजारी जी को बुलाया गया और गृभगृह से मुख्य मूर्ती को निकाल कर मंदिर में नव स्थापित मूर्ती के पास उसी स्थान पर पुनः स्थापित किया गया, तब जाकर माँ ब्रह्माणी शांत हुई ।
पता:
ब्रह्माणी माता मंदिर
मेड़ता रोड, नागौर-341511
दूरभाष : 01591-276285
- मेड़ता रोड कैसे पहुंचें:
- रेल मार्ग :
- मेड़ता रोड जंक्शन स्टेशन कोड MTD,
- मारवाड़ छपरी रेल मार्ग स्टेशन
- सड़क मार्ग:
- बीकानेर से मेड़ता रोड़ : 162 कि. मी.
- अजमेर से मेड़ता रोड़ : 95 कि. मी.
Jaipur-Metra Road: NH 48; 4 h 23 min (222Km)
- Jodhpur-Metra Road: NH 25; 2 h 42 min (122Km)
मेड़ता रोड बस स्टॉप
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- वीर तेजा जी बस स्टेशन छपरी
छपरी खुर्द- 341514: 8.3 कि. मी. - कलरू बस स्टैंड
एम.डी.आर. 58; कालरू- 341510: 10.1 कि. मी. - रियां गांव बस स्टॉप
रियां-श्यामदास- 341511: 10.2कि. मी. - लांबा जाटान बस स्टॉप
एम.डी.आर. 58; लांबा जाटान- 341510: 10.4 कि. मी.
- वीर तेजा जी बस स्टेशन छपरी
संदर्भ:
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- भास्कर संवाददाता
- google Search
- various web sight
- www.mission kuldevi.in
- https://www.facebook.com/brahmaniji
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अनुरोध:
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विड़ियों:
Posted by Shree Brahmani Mataji ( Shree Falodi Mataji ) Merta Road Rajesthan on Monday, January 30, 2017