पल्लू का इतिहास
पल्लू, राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के रावतसर तहसील का एक उप तहसील मुख्यालय है। जिस का एक ऐतिहासिक, धार्मिक एवं पुरातत्व महत्व हैं। पुरातन समय में यह नदी घाटी सभ्यता का इलाका रहा हैं। इसकी भौगोलिक स्थिति बाड़मेर, जैसलमेर और चुरू की तरह हैं। इस गाँव के चारों ओर थार मरुस्थल हैं, आस पास कहीं भी पहाड़ नहीं हैं ।
पल्लू के विभिन्न शासक:
विभिन्न लोंगो का पल्लू में राज रहा हैं, जैसे कि बीकानेर के राजपुत राजा, परमार, चौहान, किलूर राजा, और सिहाग जाटों का। यह गाँव पहले प्रह्लादपुर, किलूर कोट के नाम से प्रसिद्ध था, अभी यह जाट सरदार की लड़की पल्लू के नाम से जाना जाता है। पल्लू गाँव अनेको बार बसा और अनेको बार उजड़ा, इसलिये हर काल में पल्लू की एक अलग कहानी है जो पुर्व की कहानी से मेल नहीं खाती हैं । इस गाँव के बारे कई दन्तकथाएं प्रचलित हैं।
चुरू से 58 मील दूर तथा गोदारा जाटों के ठिकाने शेखसर से 12 मील की दूरी पर सूई, लूणकरणसर तहसील में हैं। यह सिहाग जाटों की राजधानी थी और यह प्रदेश सियागगोटी या स्यागोटी कहलाता था। गाँवों की संख्या पर इतिहासकारों में मतभेद हैं, दयालदास ने इनके आधिपत्य गाँवों की संख्या 140 लिखी है जबकि कर्नल टॉड व ठाकुर देशराज ने इनकी संख्या 150 बताई है। ठाकुर देशराज व दयालदास के अनुसार इनकी राजधानी पल्लू थी और राजा का नाम चोखा था। इनके राज्य की सीमा में रावतसर, बीरमसर, दांदूसर, गण्डेली आदि थे। सिहागों का दूसरा ठिकाना संभवतः पल्लू रहा हो जो सूई से कुछ मील दूर नोहर तहसील में है। चौहानों के काल में पल्लू जैन धर्म का एक प्रमुख केन्द्र था, जहाँ से 11 वीं शताब्दी की अनेक मूर्तियाँ मिली हैं जिनमें एक राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली व एक बीकानेर संग्रहालय में है।
विक्रम की 16 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अन्य जाट ठिकानों की तरह पल्लू व सूई पर भी राठोड़ों का अधिकार हो गया था। कहते हैं कि सिहाग जाटों ने सरलता से राठोड़ों की अधीनता स्वीकार नहीं की थी, तब सिहाग जाटों को धोखे से बुलाकर एक बाड़े में खड़ा करके जला दिया गया था।
पल्लू और राजकुमार किलूर:
दन्तकथाओं और श्रुतिओ के मुताबिक पल्लू को कोट किलूर कहा जाता था। ऐसी मान्यता हैं कि आबू के राजा गजपत (गणपत ) के सुपुत्र किलूर ने ऋषि मार्केण्डय के आबू आगमन पर बहुत लगन और मनोभाव से उनकी सेवा की थी, जिस से खुश होकर ऋषि मार्केण्डय ने किलूर को मनोकामना पूर्ण होने का आशिर्वाद दिया। इसके बाद राजकुमार ने माँ ब्राह्मणी की कठिन तपस्या की, जिस से माता ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो राजकुमार किलूर ने पिता से अलग एक राज्य की स्थापना का वर माँगा और माता रानी के आशीर्वाद से ब्रह्मवृत प्रदेश में ( वर्तमान पल्लू गाँव) में कोट किलूर राज्य की स्थापना की।
सिहाग जाट मूगंधड़का की बेटी पल्लू:
पल्लू नाम को ले कर यह कथा यह प्रचलित है कि मूगंधड़का नामक सिहाग जाट का कोट कल्लूर पर अधिकार था। उसने डरकर दिल्ली के साहब नामक शहजादे से अपनी बेटी पल्लू का विवाह कर दिया। लेकिन वह मन से नहीं चाहता था, इसलिये उसने अपने दामाद को भोजन में विष दे दिया, जिस के फलस्वरूप साहब अपने महल में जाकर मर गया। कुछ देर के बाद जाट ने साहब मर गया या नहीं यह पता लगाने के लिए अपने बेटे को भेजा । उसने जैसे ही महल की खिड़की से अंदर झाँका, क्रुद्ध पल्लू ने उसका सिर काट लिया और उसकी लाश को महल में छुपा दिया। इसी प्रकार बारी-बारी से उसने अपने पांचो भाइयों को मार दिया, इस पर जाट ने कहा
जावै सो आवै नहीं, यो ही बड़ो हिलूर (फितूर)।
के गिटगी पल्लू पापणी, के गिटगो कोट किलूर ।।
धार्मिक महत्व :
कस्बे में माता ब्रह्माणी, सरस्वती व महाकाली का मंदिर है। ये पुराने किले की थेहड़ पर बना है। माता की दूर-दूर तक मान्यता है। वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर में स्थापित मूर्तियों पर जैन सभ्यता की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है। किले पर बसे घरों में मकान बनाते समय आज तक पत्थर से बनी मूर्तियां निकलती हैं। इन अनेक पत्थरों पर जैन तीर्थंकरों की प्रतिमा उत्कीर्ण होने से यहां की पुरानी सभ्यता के लोगों का जैन मतावलम्बी होना माना जाता है। हाल ही कृषि पर्यवेक्षक भंवरसिंह नाई के घर खुदाई के दौरान सुंदर मूर्ति निकली जिसकी सूचना प्रशासन को दी गई। प्रशासन की अनुमति से प्रतिमा श्रीगंगानगर मेंं जैन मंदिर की शोभा बढ़ा रही हैं। इससे पता चलता है कि यहां थेहड़ में अनेक अवशेष दबे हैं। वर्तमान में यहां हिन्दू रीति-रिवाज से पूजा-अर्चना होती है। अन्य स्थलों में यहां के जोहड़ (ढाब) में बोढ़ डडूका खेजड़ा भी ख्याति प्राप्त हैं। यह करीब 1300 सौ वर्ष पुराना माना जाता है। सिहाग गौत्र के जनकराव के पुत्र माणक के साथ उनकी पत्नी लाछा डूडण इस खेजड़े से सत्रह कदम दक्षिण में सती हुई थी। इस प्रकार यह खेजड़ा सती लाछा डूडण की याद दिलाता है। कस्बे में सादुल नामक वीर सेनापति का मंदिर, शिव मंदिर, पंच मुखी बालाजी मंदिर तथा किले की प्राचीन सुरंग भी दर्शनीय है। अतीत में किले के दक्षिण-पश्चिम हिस्से पर बावड़ी थी जो अब जमीदोंज हो गई। अतीत में पल्लू कस्बा समृद्ध तथा वैभवशाली सभ्यता का विराट स्तम्भ रहा हैं।
पुरातात्विक महत्व :
गांव में मध्य युग से पूर्व चूने का एक किला था। इसका निर्माण तीन चरण में हुआ। मध्य युग में यह किला आबाद रहा। यह क्षेत्र महमूद गजनवी के आक्रमण की जद में भी रहा। गजनवी ने ईस्वी सन 1025 में यहां आक्रमण किया। इतिहास में वर्णित युद्ध कथाओं से परे इसकी जीवंतता आज तक बनी हैं। सैकड़ों बीघा भूमि क्षेत्र में आज भी मानव हड्डियां तथ्यों पर अमिट चादर ओढ़े हुए हैं।
रियासत काल में इटली के पुरावेता लुईजी पिरो टेस्सिटोरी ने यहां वर्ष 1917 में पुरातन रियासत कालीन थेहडऩुमा किले की खुदाई करवाई। इसमें कई दुर्लभ कृतियां व सिक्के इत्यादि मिले थे। ये दिल्ली तथा बीकानेर संग्रहालय मेें रखे हुये हैं। स्वामी केशवानंद भी यहां से काफी पुरा सामग्री ऊंटों पर लाद कर संगरिया ले गए थे जो आज भी संगरिया में ग्रामोत्थान संग्रहालय में हैं। टेस्सिटोरी का देहांत होने से यहां खुदाई बीच में रह गई और इस प्रकार पुरातन सभ्यता से जुड़े अनेक रहस्य जमीन में ही दबे ही रह गए। इस दौरान यहां संग्रहालय बनाने के लिए पुरातत्व निदेशक ने स्वामी केशवानंद के साथ निरीक्षण किया। परन्तु धनाभाव के कारण यहां संग्रहालय नहीं बन सका।
कस्बे में पुरा महत्व की सामग्री यत्र-तत्र टेस्सिटोरी बिखरी पड़ी हैं। पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग की अनदेखी और उदासीनता से यह अनमोल धरोहर उजड़ रही हैं। यदि पुरातत्व को संरक्षण दिया जाए तो अब भी काफी कुछ बचा हैं जिसे संरक्षित किया जा सकता हैं।
संदर्भ:
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- चूरू जनपद के जाटों का इतिहास: दौलतराम सारण डालमाण
- जगदीश मनीराम साहू (निवासी ढाणी छिपोलाइ )
- budhgirgosvami.bolgspot.in
- palluinfo.bolgspot.in
- Jatland.com
- Google search
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विड़ियो:
Pallu Ka Itihas
Pallu, Rajasthan ke Hanumaanagadh jile ka Raavatasar tahaseel ka ek up tahaseel mukhyaalay hai. Jis ka ek aitihaasik, dhaarmik evan puraatatv mahatv hain. Puraatan samay mein, yah nadee ghaatee sabhyata ka ilaaka raha hain. isakee bhaugolik sthiti baadamer, jaisalamer aur churoo kee tarah hain. Is gaanv ke chaaron or thaar marusthal hain, aas paas kaheen bhee pahaad nahin hain.
Pallu Ke vibhinna shashak
Vibhinn longo ka palloo mein raaj raha hain, jaise ki beekaaner ke rajaput raja, paramar, chauhan, kiloor raja, aur sihaag jaaton ka. yah gaanv pahale prahladapur, kiloor kot ke naam se prasiddh tha, abhee yah jaat saradaar kee ladakee palloo ke naam se jaana jaata hai. Palloo gaanv aneko baar basa aur aneko baar ujada, isaliye har kaal mein palloo kee ek alag kahaanee hai jo purv kee kahanee se mel nahin khatee hain. Is gaanv ke baare kaee dantakathaen prachalit hain.
Churu se 58 meel door tatha godaara jaaton ke thikaane shekhasar se 12 meel kee dooree par sooee, loonakaranasar tahaseel mein hain. yah sihaag jaaton kee raajadhaanee thee aur yah pradesh siyaagagotee ya syaagotee kahalaata tha. gaanvon kee sankhya par itihaasakaaron mein matabhed hain, dayaaladaas ne inake aadhipaty gaanvon kee sankhya 140 likhee hai jabaki karnal tod va thaakur desharaaj ne inakee sankhya 150 bataee hai. thaakur desharaaj va dayaaladaas ke anusaar inakee raajadhaanee palloo thee aur raaja ka naam chokha tha. inake raajy kee seema mein raavatasar, beeramasar, daandoosar, gandelee aadi the. sihaagon ka doosara thikaana sambhavatah palloo raha ho jo sooee se kuchh meel door nohar tahaseel mein hai. chauhaanon ke kaal mein palloo jain dharm ka ek pramukh kendr tha, jahaan se 11 veen shataabdee kee anek moortiyaan milee hain jinamen ek raashtreey sangrahaalay naee dillee va ek beekaaner sangrahaalay mein hai.
Vikram kee 16 veen shataabdee ke poorvaardh mein any jaat thikaanon kee tarah palloo va sooee par bhee raathodon ka adhikaar ho gaya tha. Kahate hain ki sihaag jaaton ne saralata se raathodon kee adheenata sveekaar nahin kee thee, tab sihaag jaaton ko dhokhe se bulaakar ek baade mein khada karake jala diya gaya tha.
Pallu aur rajkumar kilur:
Dantakathaon aur shrutio ke mutaabik palloo ko kot kiloor kaha jaata tha. Aisee maanyata hain ki aaboo ke raaja gajapat (Ganapat ) ke suputr kiloor ne rshi Maarkenday ke Aaboo aagaman par bahut lagan aur manobhaav se unakee seva kee thee, jis se khush hokar rshi maarkenday ne kiloor ko manokaamana poorn hone ka aashirvaad diya. Isake baad raajakumaar ne maan braahmanee kee kathin tapasya kee, jis se maata ne prasann hokar var maangane ko kaha to raajakumaar kiloor ne pita se alag ek raajy kee sthaapana ka var maanga aur maata raanee ke aasheervaad se Brahmavrt pradesh mein ( vartamaan palloo gaanv) mein kot kiloor raajy kee sthaapana kee.
Sihaag jaat Moogandhadakaki beti Pallu:
Pallu naam ko le kar yah katha yah prachalit hai ki moogandhadaka naamak Sihaag jaat ka kot kaliur par adhikaar tha. Usane darakar dillee ke saahab naamak shahajaade se apanee betee palloo ka vivaah kar diya. Lekin vah man se nahin chaahata tha, isaliye usane apane daamaad ko bhojan mein vish de diya, jis ke phalasvaroop saahab apane mahal mein jaakar mar gaya. Kuchh der ke baad jaat ne saahab mar gaya ya nahin yah pata lagaane ke lie apane bete ko bheja . usane jaise hee mahal kee khidakee se andar jhaanka, kruddh palloo ne usaka sir kaat liya aur usakee laash ko mahal mein chhupa diya. Isee prakaar baaree-baaree se usane apane paancho bhaiyon ko maar diya, is par jaat ne kaha-
jaavai so aavai nahin, yo hee bado hiloor (phitoor)
ke gitagee palloo papanee, ke gitago kot kiloor ..
Dharmik Mahatav:
Kasbe mein maata Brahmaanee, Sarasvatee va Mahaakaalee ka mandir hai. Ye puraane kile kee thehad par bana hai. Maata kee door-door tak maanyata hai. Varsh bhar yahaan shraddhaaluon ka taanta laga rahata hai. Mandir mein sthaapit moortiyon par jain sabhyata kee chhaap spasht dikhaee padatee hai. kile par base gharon mein makaan banaate samay aaj tak patthar se banee moortiyaan nikalatee hain. in anek pattharon par jain teerthankaron kee pratima utkeern hone se yahaan kee puraanee sabhyata ke logon ka jain mataavalambee hona maana jaata hai. Haal hee krshi paryavekshak bhanvarasinh naee ke ghar khudaee ke dauraan sundar moorti nikalee jisakee soochana prashaasan ko dee gaee. Prashaasan kee anumati se pratima shreegangaanagar menn Jain mandir kee shobha badha rahee hain. Isase pata chalata hai ki yahaan thehad mein anek avashesh dabe hain. Vartamaan mein yahaan hindoo reeti-rivaaj se pooja-archana hotee hai.
Aany sthalon mein yahaan ke johad (dhaab) mein bodh dadooka khejada bhee khyaati praapt hain. Yah kareeb 1300 , varsh puraana maana jaata hai. Sihaag gautr ke janakaraav ke putr maanak ke saath unakee patnee laachha doodan is khejade se satrah kadam dakshin mein satee huee thee. is prakaar yah khejada satee laachha doodan kee yaad dilaata hai. Kasbe mein saadul naamak veer senaapati ka mandir, shiv mandir, panch mukhee baalaajee mandir tatha kile kee praacheen surang bhee darshaneey hai. Ateet mein kile ke dakshin-pashchim hisse par bavadee thee jo ab jameedonj ho gaee. Ateet mein palloo kasba samrddh tatha, vaibhavashaalee sabhyata ka viraat stambh raha hain.
Puratatvik Mahatv :
Gaanv mein madhy yug se poorv choone ka ek kila tha. isaka nirmaan teen charan mein hua. Madhy yug mein yah kila aabaad raha. yah kshetr mahamood gajanavee ke aakraman kee jad mein bhee raha. Gajanavee ne eesvee san 1025 mein yahaan aakraman kiya. itihaas mein varnit yuddh kathaon se pare isakee jeevantata aaj tak banee hain. Saikadon beegha bhoomi kshetr mein aaj bhee maanav haddiyaan tathyon par amit chaadar odhe hue hain.
Riyaasat kaal mein italee ke puraveta lueejee Piro Tessitoree ne yahaan varsh 1917 mein puraatan riyaasat kalin thehadanuma kile kee khudaee karavaee. isamen kaee durlabh krtiyaan va sikke ityaadi mile the. ye dillee tatha beekaaner sangrahaalay mein rakhe huye hain. svaamee keshavaanand bhee yahaan se kaaphee pura saamagree oonton par laad kar sangariya le gae the jo aaj bhee sangariya mein graamotthaan sangrahaalay mein hain.
Tessitoree ka dehaant hone se yahaan khudaee beech mein rah gaee aur is prakaar puraatan sabhyata se jude anek rahasy jameen mein hee dabe hee rah gae. is dauraan yahaan sangrahaalay banaane ke lie puraatatv nideshak ne svaamee keshavaanand ke saath nireekshan kiya. Parantu dhanaabhaav ke kaaran yahaan sangrahaalay nahin ban saka.
Kasbe mein pura mahatv kee saamagree yatr-tatr tessitoree bikharee padee hain. puraatatv vibhaag aur paryatan vibhaag kee anadekhee aur udaaseenata se yah anamol dharohar ujad rahee hain. yadi puraatatv ko sanrakshan diya jae to ab bhee kaaphee kuchh bacha hain jise sanrakshit kiya ja sakata hain.
Sandharbh:
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- चूरू जनपद के जाटों का इतिहास: दौलतराम सारण डालमाण
- जगदीश मनीराम साहू (निवासी ढाणी छिपोलाइ )
- budhgirgosvami.bolgspot.in
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- Jatland.com
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Video:
History of Pallu
Pallu town is in the sub-tehsil headquarters of Rawatsar tehsil of Hanumangarh district of Rajasthan. The place has a historical, religious and archaeological importance. In ancient times this place has been the area of river valley civilization. Its geographical position is like Barmer, Jaisalmer and Churu. The Thar Deserts surrounds the town and there are no mountains or hills anywhere near it.
Kings Who Ruled Pallu:
Many Kings have ruled Pallu, such as the Rajput kings of Bikaner, Parmar, Chauhan, Killur Raja, and Sihag Jats. Pallu was earlier known as Prahladpur, Kilur Kot, now it is known after the Jat Sardar’s girl name ‘Pallu’. Pallu has been colonized many times and at times it was desolate and barren, so Pallu has a different story in every era that does not match the previous one. Interesting legends and folktales abound of this town.
The Godara Jats are located in a place called Sui which is in Lunkaransar tehsil, 58 miles away from Churu and 12 miles from Sheikhsar. It was the capital of Sihag Jats and the region was called Siaggoti or Siagoti.
Historians differ on the number of villages. Dayaldas has written that there were one hundered and forty villages under his command whereas Colonel Tod and Thakur Deshraj have said that there were one hundred and fifty vilages.
According to Thakur Deshraj and Dayaldas, their capital was Pallu and the name of the kings was Chokha. Towns like Rawatsar, Biramsar, Dandusar, Gandeli etc. were within the boundary of their kingdom.
The other place of Sihagas may have been Pallu, which is in Nohar Tehsil, a few miles from Sui. Pallu was a major center for Jainism activities during the period of Chauhans. Many 11th century sculptures have been found in Pallu and one of them is in National Museum in New Delhi and one in Bikaner Museum.
In the first half of Vikram’s 16th century, like other Jat bases, Pallu and Sui too had control by the Rathos. It is said that Sihag Jats did not accept the subjugation of Rathoda’s easily. Rathos cheated Sihag Jats, by calling them for negotiaton and burned them alive in their enclosure and this by treachery is still remembered by the locals.
Pallu and Prince Kilur:
According to the legends and mythology, Pallu was called’Kot Kilur’. Once sage Markandey visited Mount Aabu, the kingdom of king Gajpat (Ganpat), his son Kilur served him with great dedication and sentiment. Rishi Markandey became very pleased and blessed Kilur to fulfill his wish. After this, the prince did the penance of the Brahmini Mata. When she appeared inside him and asked him for a wish the prince Kilur asked for the establishment of a kingdom separate from his father and with the blessings of Brahmini Devi, he established Kot Kilur State (present-day Pallu village), in the Brahmavrita state.
Pallu Daughter of Sihag Jat Moongandhraka:
One legend is that the Sihag Jat named Moogandhraka was the king of Kiloor. In the fear of Mugals, he married his daughter Pallu to a prince named Shahib from Delhi. But he did not want to part with her so he poisoned the food of his son-in-law and Sahib went to his palace and died. After some time, the Jat King sent his son to find out whether Sahib was dead or not. As he peeked inside the palace window, the enraged sister Pallu beheaded him and hid his corpse in the palace. Similarly, in turn she killed here five brothers, to which Jat said-
Who goes inside..Never comes back..this is baffling (puzzling)
Pallu witch is eaten them or they were eaten by Kot Kilur.
Religious importance:
The town has temples of Mata Brahmani, Saraswati and Mahakali. It is built on the threshold of the old fort. Mata has far-reaching recognition. There is a flow of devotees throughout the year. The sculptures installed in the temple clearly reflect the Jain style of carving. The statues found were mostly engraved with Jain Tirthankaras, that’s clearly shows that earlier Jainsim was the most popular in this region. Presently Hinduism is practice widely.
While rebuilding houses in the inhabited fort, stone sculptures are found till date. Recently, during the excavation of the house of agricultural supervisor Bhanwar Singh Nai, the beautiful statue of Mahavir swamy came out, which was given to the administration. Today the statue is adorning the Jain temple in Sri Ganga Nagar. Still there are many remains buried in Thehad here.
In other places, Bodh Daduka Khejda is also famous in Johad (Dhab). It is believed to be around 1300 hundred years old. Lachha Doodan wife of Manak, who was son of Janakrao of Sihag Gautra became sati from this Khejade. Thus this place is famous of the Khejda Sati Lachha Dudan. The temple of Veer Senapati named Sadul, Shiva temple; Panch Mukhi Balaji temple and the ancient tunnel of the fort are also visible in the town. In the past, there was a stepwell on the south-west part of the fort which now Ruins. In the past, Pallu town has been a colossal pillar of rich and prosperous civilization.
Archaeological significance:
The village had a lime fort before the middle Ages, was constructed in three phases and inhabited in those times. This area was also under the attack of Mahmud Ghaznavi in 1025 AD. Beyond the war stories described in history, its vivacity remains to this day. In the area of hundreds of bigha land, even today, human bones are covered with indelible sheets of facts.
During the princely period, the Italian archivist Louis Piro Tessitori excavated the ancient Fort here in the year 1917. Many rare statue and coins etc. were found. They are housed in the Delhi and Bikaner museums. Swami Keshavanand also brought a lot of material from here to Sangria on camels which are still in the Gramotthan Museum in Sangria. With the death of the Tessitori, excavation here was interrupted and thus many mysteries related to the ancient civilization remained buried in the ground. During this time, the Director of Archeology and Swami Keshavananda planned to build a museum here. But due to the low budget, the museum could not be built.
In the town, the contents of full importance are scattered here and there. This precious heritage is being destroyed by the neglect and indifference of the Department of Archeology and Tourism. If archeology is given protection, there is still a lot that can be preserved.
References:
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- चूरू जनपद के जाटों का इतिहास: दौलतराम सारण डालमाण
- जगदीश मनीराम साहू (निवासी ढाणी छिपोलाइ )
- budhgirgosvami.bolgspot.in
- palluinfo.bolgspot.in
- Jatland.com
- Google search
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