बाबा खेतरपाल मन्दिर-रावतसर
राजस्थान के जिला हनुमानगढ के रावतसर तहसील मे मेगा हाईवे हनुमानगढ रोड़ पर स्थित बाबा खेतरपाल मन्दिर है। धर्म नगरी के नाम से मशहूर रावतसर कस्बे मे यूँ तो कई मन्दिर व देव स्थान है लेकिन बाबा खेतरपाल मन्दिर की आस्था भारतवर्ष के कोने कोने मे फैली हुई है।
दूर दराज से श्रद्धालु बाबा खेतरपाल जी के धोक लगा कर अपनी मन्नते पूरी करने के लिए आते है। अपनी मनोकामना पूरी होने पर लडडू,बतासे,तैल,सिन्दूर आदि का प्रसाद चढाते है, तो कोई उबले चने (बाकळे) व जीवित बकरे जिसे अमर बकरे के नाम से जाना जाता है को भी चढाते है। इस मन्दिर मे भारी संख्या मे आने वाले श्रद्धालुओ के लिए रहने ठहरने आदि का पूरा प्रबन्ध मन्दिर निर्माण कमेटी द्वारा किया जाता हैं।
पता:
बाबा खेतरपाल मन्दिर,
हनुमानगढ-सरदार शहर रोड़,
रावतसर,
राजस्थान-335524
कैसे पहुँचे :
रावतसर सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। राज्य द्वारा स्वचलित बसें और निजी टैक्सियां हैं। सभी बजटों के अनुरूप परिवहन आसानी से उपलब्ध है।
6घंटे12 मिनट(359.5कि.मी.): NH52- हनुमानगढ-सरदार शहर रोड़,
मन्दिर की स्थापना :
मन्दिर स्थापना के बारे मे यूं तो कई कथाऐं प्रचलित हैं, लेकिन मन्दिर के मुख्य पुजारी नारायण सिंह सुडा (राठौड़) ने बताया कि इस मन्दिर की स्थापना वर्ष 1593 मे रावत राघोदास जी द्वारा हुई थी। वर्ष 1593 मे रावत राघोदास जी व बीकानेर के राजा रायसिंहजी सेना के साथ गुजरात मे गये हुये थे। गुजरात और दक्षिण मे भयकंर अकाल पड़ा हुआ था सेना सहित सभी दाने-दाने को मोहताज हो गये। राजा रायसिंह और सैनिक एक दूसरे से बिछुड़ गये। राजा रायसिंहजी व राघोदासजी सेना को तलाशते हुए बियाबान जगंल मे चले गये। ढुंढ़ते हुये को दूर दूर तक कोई नजर नही आया। फिर उन्हे टीले पर एक कुटिया नजर आयी और दोनो उस कुटीया के पास गये, उन्हे कुटिया के आगे एक कुता बैठा दिखाई दिया। दोनो को देख कर कुते ने कान फड़फडाये तो कुटिया के अन्दर ध्यान मुद्रा मे बैठे एक महात्मा ने दोनो को आवाज देकर कुटिया के अन्दर आने को कहा। दोनो अन्दर जा कर महात्मा के पास नीचे जमीन पर बैठ गये । महात्माजी ने दोनो से बियाबान जगंल मे आने का कारण पूछा तो राजा रायसिंह ने बताया कि उनकी सेना उनसे बिछुड़ गयी है और हम उन का भूख प्यास से बुरा हाल है।
यह सुन कर महात्माजी ने अपने कमण्डल की और इशारा कर कहा कि इस कमण्डल मे पानी है दोनो पी लो। राजा राजसिंह ने सोचा की कमण्डल मे दो घूंट पानी से दोनो की प्यास कैसे बुझेगी। महात्मा जी ने फिर कहा कि कमण्डल से पानी पी लो। राजा रायसिंह व राघोदास जी ने उस कमण्डल से पानी पीकर अपनी प्यास बुझा ली लेकिन कमण्डल मे उतना ही पानी शेष देखकर दोनो ने सोचा की ये महात्मा कोई साधारण नही अपितु कोई सिद्ध पुरूष है। तभी महात्मा जी ने राजा रायसिंह से कहा कि बाहर जा कर आवाज लगाओ तुम्हारी सेना भी आ जायेगी। राजा ने बाहर जाकर सेना का आवाज लगायी तो चारो तरफ से सैनिक आते दिखाई देने लगे।
तब राजा रायसिंह ने महात्मा जी से अपनी और सेना के भूखे होने की बात बतायी तो महात्मा जी ने कहा कि कुटिया मे भोजन रखा है सभी खा लो तो राजा रायसिंह ने देखा कि एक थाली मे थोड़ा से भोजन रखा है उससे सभी कैसे खायेगें । लेकिन महात्माजी के चमत्कार के कारण पूरी सेना व दोनो जनो ने आराम से भूख मिटा ली । उस दौरान बीकानेर इलाके मे भी भारी भूखमरी फैली हुई थी।
राजा रायसिंह ने राघोदास जी से कहा कि क्यो ना इन महात्माजी को अपने क्षेत्र मे ले चले ताकि वहां की भूखमरी दूर हो सके । इस पर दोनों ने महात्माजी से अपने इलाके मे चलने का निवेदन किया। महात्मा जी बोले कि मेरे 52 रूप है, यंहा पर जगलीं जानवर, राक्षस, भूत ,जीन आदि सभी को उनके अनुसार खाना खिलाता हूं। राजा रायसिंह व रावत राघोदास के अधिक निवेदन करने पर महात्माजी बोले की एक ही शर्त पर मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूं अगर आप लोग मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाओ तो और अगर बीच रास्ते मे मुझे कही भी उतार दिया तो उससे आगे एक कदम भी मै नही जाउगां।
राजा रायसिंह व राघोदास जी ने महात्माजी शर्त मान कर उन्हे अपनी पीठ पर बैठा लिया। रावतसर क्षेत्र के गढ ठिकाणे की कांकड़ के पास आकर राजा रायसिंह ने महात्मा जी को उतार कर, गढ मे महात्मा जी के लिए उचित स्थान देखने के लिए चल पड़े। वापस आकर महात्मा जी से गढ ठिकाणे चलने का निवेदन किया, तो महात्मा जी ने इंकार करते हुए कहा कि मैं अपने कहे अनुसार एक बार उतारने के बाद नहीं जाऊंगा, वरन् यहीं रहकर ही क्षेत्र की रक्षा करूंगा।
तब राजा रायसिंह व रावत राघोदास जी ने महात्मा जी से कहा कि महाराज इस इलाके मे भूखमरी बहुत अधिक फैली हुई है तो महात्मा जी ने राजा रायसिंह को मुठठी भर अनाज देते हुए कहा कि गढ ठिकाणे मे एक कड़ाही मे इस अनाज को पका कर उपर कपड़ा डाल देना और कपड़े को सिर्फ इतना ही हटाना जितने से अनाज निकाला जा सके और गढ ठिकाने पर चढ कर भूखो को खाना खाने के लिए आवाज लगा देना।
उसके बाद आसपास के 54 गांवो के भूखे लोगो द्वारा गढ ठिकाणे की आवाज पर खाना खिलाया जाता था। बताया जाता है कि जब तक गढ ठिकाणे से आवाज लगायी जाती रही तब तक इस क्षैत्र मे कोई भूखा नही रहा। तब से महात्माजी का नाम क्षेत्रपाल महाराज पड़ा जो अब धीरे धीरे बाबा खेतरपाल जी महाराज के नाम से मशहूर है। धीरे धीरे बाबा के चमत्कारो की सूचना दूर दराज तक फैलने लगी। गुजरात से वापिस आने के बाद राजा रायसिंह ने राघोदासजी को रावत की पदवी और वे रावत राघोदास कहलाने लगे।
इस क्षेत्र मे वर्ष मे तीन बड़े मेले आषाढ़, चैत्र व माघ माह में लगते है, इन 15 दिवसीय मेलो मे देश के कोने कोने से लोग आते है। मुख्य पुजारी नारायण सिंह सुडा (राठौड़) के वंशज मन्दिर स्थापना के समय से ही बाबा खेतरपाल जी महाराज की पूजा अर्चना कर रहे है। जब इस मन्दिर की स्थापना हुई थी तो इस इलाके मे चारो तरफ कंटीली झाड़ियाँ व बियाबान जंगल था । खेतरपाल जी का छोटा सा मन्दिर था जिसमे उनके वंशज प्रतिदिन दीपक जलाते व पूजा करते थे।
तब से आज तक इस मन्दिर मे तेल का दीपक 24 घण्टे नियमित जलता रहता है। वही मन्दिर परिसर मे सात अन्य छोटे छोटे मन्दिर है जो बाबा खेतरपाल जी के ही रूप है जिनमे मालासिंह जी, भैरू जी, कोडमदेसरजी, तौलियासर भैरूजी, चलकोईजी, चोटियाजी व सात मावड़ीया जी हैं। मन्दिर मे बाबा खेतरपाल जी के धोक लगाने आने वाले श्रद्धालु इन मन्दिरो मे भी धोक अवश्य लगाते है । वही मन्दिर परिसर मे लगी झाड़ियों पर लाल मोली का धागा बाधं कर मनोकामना पूरी होने के लिए खेतरपाल जी से विनती की जाती है तथा मन्नत पूरी होने के बाद इन झाड़ियों से मोली के धागे को खोला जाता है।
दोहा
सातां रिपिया सेर, दाणो मिले न दक्खन में ।।
रोटियां दीनी रैन, रावत राघोदास थै।।
संदर्भ:
Google Search
photos: Google
रिपोर्ट – जगत जोशी
https://www.facebook.com/DhanDhanBabaKhetarpalJi/photos/947034068736381
वीड़ियों:
http://www.hinduastha.com/2016/11/Ketrpal-Baba-temple-city-of-religion-Rawatsr.html
https://www.youtube.com/watch?v=uc0yD7SYou4
पूजा का विवरण
https://www.youtube.com/watch?v=cpSvAhMZWMA
आरती, चालीसा
https://www.youtube.com/watch?v=VwVaXKKxOZA
https://www.youtube.com/watch?v=a9n3TYCrTSA
रावतसर का इतिहास
पंजाब की कढ़ाई
https://www.youtube.com/watch?v=wLlDrM2_I8A
भजन
https://www.youtube.com/watch?v=6sWguoLbZSc
https://www.youtube.com/watch?v=V2cPFObFmsE
https://www.youtube.com/watch?v=F3L4HEoENUs
खेतरपाल चालीसा
खेतरपाल संकट हरो, मंगल करो सब काम। शरण तुम्हारी आन पड़े ,दर्श दिखाओ आन ।।
चालीसा तेरी गाउं मै, दयो ज्ञान भरपूर । क्षमा करो अपराध सब, संकट करो थे दूर।।
खेतरपाल तेरी महिमा न्यारी । रावतसर मे दर्शन भारी ।।
राधोदास पहला दर्शन पाया। जिस ने तेरा नाम बढाया ।।
रूद्र का अवतार धराया। खेतरपाल तुम नाम रखाया ।।
सबके संकट हरने वाला । भक्त जनो का है रखवाला ।।
भैरो रूप मे रचे सब लीला। शिव का गुण हम सब को दीना।।
मुखड़े तेरे सिंदूर विराजे। खड़ग त्रिशुल हाथो मे साजे।।
सिर पर जटा मुकुट विराजे। पांव मे कंगना घुंघरू बाजै।।
नैन कटोरे रूप विशाला। सब भक्तो का है रखवाला।।
मस्तक आपके तिलक सुहावे। जो दर्श करे वो अति सुख पावे ।।
शिव अवतार श्री खेतरपाल नामा। ग्राम रावतसर पावन धामा।।
लाल ध्वजा तेरे द्वारे साजे। तेल सिंदूर चरणो मे विराजे ।।
काले घोड़े की हैं सवारी। भक्त जनो का है हितकारी।।
खेतरपाल का नाम जो ध्यावे। भूत प्रेत निकट ना आवे।।
सते मईया का भाई कहलावे। उनकी संग मे पूजा करावे।।
जय अवतारी निरंजन देवा। सुर नर मुनि जन करे सब सेवा।।
द्वारे तेरे जो भी आवे । बिन मांगे वह सब कुछ पावें।।
शरण मे तेरी हम सब आये। तेरी जय जय कार बुलाये।।
तुम्हरा नाम लिए दुख भागे। सोई सुमती सम्पदा जागे।।
भीड़ पड़़ी संतो पे जब जब। सहाय भये तुम बाबा तब तब।।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे । मन इच्छा फल तुम से पावे।।
खेतरपाल जिन नाम ध्याया। अक्षय परम धाम तिन पाया।।
जब जब भगतो ने लिया सहारा। बाबा जी तुमने दिया सहारा।।
बाबा जी में नूर समाया। सब भक्तो ने दर्शन पाया।।
रावतसर धाम की लीला न्यारी। दूर दूर तक महके फुलवारी।।
धाम तेरे की बात निराली। सब भक्तो पर छाये लाली।
चौदस को जो तेल सिंदूर चढ़ावे। उनके सकल कष्ट मिट जावे।।
रावतसर धाम मे अखण्ड जोत जगे है। दुष्ट जनो के पाप भगे है।।
सारे जग मे महिमा तुम्हारी। दीन दुखियो के हो हितकारी।।
खेतरपाल तुम हो बलवाना। दुष्टो के तुम काल समाना।।
बाबा जी तुम अन्तरयामी। शरणागत के तुम हो स्वामी।।
दीन दुखी जो शरण मे आते । उनके सारे दुख मिटाते ।।
भक्तो पर तुम कृपा करते । सिर पर हाथ दया का धरते।।
अब खेतरपाल अरज सुन मेरी। करो कृपा नही लाओ देरी।।
सब अपराध क्षमा कर दीजो। दीन जनो पर कृपा कीजो।।
प्रातःसमय जो तुम्हे ध्यावे। वो नर मन वांछित फल पावे।।
खेतरपाल की करे जो सेवा। तुम्हरे समान कोई और ना देवा।।
खेतरपाल चालीसा जो गावे। जन्म जन्म के पाप नसावे।।
जो सत बार पाठ कर जोई। बाबा जी की कृपा होई।।
’भगत’ तेरे चरणन् का दासा। पूरी करो मेरी सारी आसा।।
।। जय बाबा दी।।
संकलन – जगत जोशी
Baba Khetarpal of Rawatsar
There is a ‘Baba Khetarpal temple’ located on the mega highway Hanumangarh road in Rawatsar tehsil of Hanumangarh district of Rajasthan. There are many temples in Rawatsar town, known as the city of religion, but the faith of Baba Khetarpal temple is spread in every corner of India. ‘Khetarpal’ is distorted version of Kshetrapal’. ‘Kshetra’ means area or region and ‘Pal’ means keeper, so who take care of the area or region is called ‘Kshetrapal’.
Address:
Baba Khetrapal Mandir,
Hanumangarh-Sardarshahar road,
Rawatsar,
Rajasthan-335524
How To Reach:
Rawatsar is well connected by road. There are state run buses, private taxis. The transport is easily available and suits to all budgets.
6 hr 12 min (359.5 km) via NH52 and Hanumangarh – Sardarshahar Rd
Devotees from far and wide come to fulfil their wishes by applying Baba Khetarpalji’s blows. After fulfilling their wishes, they offer Prasad of laddu, batase, oil, vermilion, etc. and also boiled chana (known bakale) and live goat known as Amar goat. The entire arrangement for staying and providing food for the devotees, who come in large numbers in this temple, is rest on temple committee.
There are many stories about the establishment of the temple, but the chief priest of the temple, Narayan Singh Suda (Rathore), told that this temple was established in the year 1593 by Rawat Raghodasji. In the year 1593, Rawat Raghodasji and Raja Raisinghji of Bikaner had gone to Gujrat and South with the army. There was a severe famine, the king and all his army was starving and in the meantime King Raisingh and the soldiers got separated from each other.
While searching for their army Raja Raisingh and Raghodasji reached in a dense jungle. While looking, they saw a hut on the mound and they went towards the hut and saw a dog sitting in front of the hut. Seeing both of them, the dog fluttered his ear and a Mahatma sitting in meditation posture inside the hut called them inside the hut. Both went inside and sat down on the ground near the Mahatma. When Mahatmaji asked both of them the reason for coming to this dense Jangal, Raja Raisingh said that his army has been separated from him and we are hungry and thirsty.
Hearing this, Mahatmaji pointed to his kamandala and said that both drink water of the kamandala. Raja Raj Singh thought that how can two of them quench the thirst with this little water. Mahatma again said to drink water from the kamandala. Raja Raisingh and Raghodasji quenched their thirst by drinking water from that kamandala, but they were surprise to see the water still in the kamandal, both of them thought that this Mahatma is not an ordinary man but an extra ordinary man with power. Then MahatmaJi told King Raisingh to go out and call his army. The king follows the order of Mahatama, went out and called his army to dismay his soldiers started coming from all the sides.
Then Raja Raisingh told Mahatma about his army is being hungry, Mahatma said that the food is kept in the hut and they can eat it, then Raja Raisingh saw a little food kept on a plate, he wondered how to eat a little food from a plate. But due to the miracle of Mahatmaji, the entire army along with Raja and Radhodasji ate the food. During that time, there was also severe famine in Bikaner area.
King Raisingh told Raghodasji that we should request the Mahatmaji to come along with us in our area so that citizen of our kingdom can have food. At this both of them requested Mahatmaji to come with them. Mahatma Ji said that “I have 52 forms, animals, animals, demons, ghosts, genes, etc. are fed to them according to them.” On request of Raja Raisingh and Rawat Raghodas, Mahatmaji said, I can come with you on one condition only if you take me by sitting on your back and if you put me down anywhere in the middle, then I will not go even one step further.
Raisingh and Raghodas accepted Mahatma’s condition and made him sit on their back. When they reached the kingdom’s outer area Raja Raisingh, took off Mahatmaji and went to look for a proper place for Mahatma in the citadel. When he came back and requested Mahatmaji to go to Garh Thikane, Mahatmaji refused and said that as my condition I will not go after taking off once, but I will stay here and going to protect the area.
Then Raja Raisingh and Rawat Raghodasji told Mahatmaji that famine is spread in this area. Mahatmaji gave one handful grain and told them to cook and keep the food in the plate covered with the cloth. Only uncovered the cloth little bit to remove the food. When food is ready climbed on the citadel and called for people to eat.
After that, the famish people of the surrounding 54 villages fed food to the call of Garh Thikane. It is said that as long as the call was made from Garh Thikane, no one was hungry in this area. Since then Mahatmaji was named Kshetrapal Maharaj, which is now slowly known as Baba KhetarpalJi Maharaj. Slowly, information about Baba’s miracles started spreading too far areas. After his return from Gujarat, Raja Raisingh gave Raghodasji the title of ‘Rawat’ and after that he was called ‘Rawat Raghodas’.
Three big fairs are held in this region in the month of Ashadh, Chaitra and Magha month; these 15-day fairs attract people from every corner of the country. The descendants of the chief priest Narayan Singh Suda (Rathore) have been offering prayers to Baba KhetarpalJi Maharaj since the establishment of the temple. When this temple was established, there was thorny shrubs and wilderness forest around this area. Khetarpalji had a small temple in which his descendants lit lamps and worshiped daily.
Since then till today, the oil lamp in this temple keeps on burning for 24 hours regularly. There are seven other small temples in the same temple complex which are in the form of Baba Khetarpalji, in which Malasinghji, Bhairuji, Kodamdesari, Towlsar Bhairuji, Chalkoji, Chotiyaji and seven mavadiyas ji. Devotees who visit Baba Khetarpalji in the temple must also dab in these temples. By binding the thread of red moli on the bushes in the same temple premises, Khetarpalji is requested to fulfill the wish and after the eradication is completed, the thread of moli is opened from these bushes.
Doha
satan ripiya ser, dano mile na dakkhan mein ।।
Rotiyaan dinee rain, raavat raghodaas thai. ।।
Doha:
After paying 7 rupees, one can’t get a single grain.
But due to Rawat Radhodas, we can get food every day.
Reference:
Google Search
photos: Google
Report Jagat Joshi
https://www.facebook.com/DhanDhanBabaKhetarpalJi/photos/947034068736381
Videos:
http://www.hinduastha.com/2016/11/Ketrpal-Baba-temple-city-of-religion-Rawatsr.html
https://www.youtube.com/watch?v=uc0yD7SYou4
Details of Khetarpalji puja
https://www.youtube.com/watch?v=cpSvAhMZWMA
Aarati
https://www.youtube.com/watch?v=VwVaXKKxOZA
https://www.youtube.com/watch?v=a9n3TYCrTSA
History of Rawatsar
Kadhai in Panjab
https://www.youtube.com/watch?v=wLlDrM2_I8A
Bhajans