हनुमानगढ़ जिले का पुरातात्विक महत्व
राजस्थान राज्य का हनुमानगढ़ जिले का पुरातात्विक दृष्टि से खासा महत्व हैं। हनुमानगढ़ ही वह जिला है जहाँ हुई खुदाई से अति प्राचीन नदी घाटी सभ्यता का केंद्र होने का पता चला हैं, जो हजारों साल पुरानी समद्ध संस्कृति को महिमा मंडित करती हैं । इस जिले में 100 से अधिक थेहड़ हैं जहाँ प्राचीन संस्कृति के अवशेष दबे पड़े हैं। यहाँ से प्राप्त मूर्तियां सिक्के तथा अन्य वस्तुऐं यह प्रमाणित करती हैं यह इलाका विभिन कालों की संस्कृति का पोषक और राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक उथल पुथल से प्रभावित रहा हैं।
पल्लू, धानसिया, करोति, सोती, पाण्डूसर, सोनड़ी, थिराना, रावतसर, लाडम, मंदरपुरा, जबरासर, भोमियों की ढाणी, भूकरका, बिरकाली, सिरंगसर, खोडा, न्योलकी, धांधूसर, बिसरासर, हनुमानगढ़, मुंडा, मसानी, गंगागढ़, रोही, मक्कासर, सहजीपुरा, बहलोल नगर, दुलमाना, रंगमहल, बड़ोपल, डबलीराठान और कालीबंगा आदि ऐसे गाँव है जहाँ थेहड़ बने हुये हैं।
कालीबंगा में खुदाई से प्राप्त हुए अवशेषों से पता चला कि यहाँ निल, वोल्गा और सिंधु घाटियों से भी प्राचीन सभ्यता थी। महाभारत में वर्णित अष्ठमुनिकार मानवीय अस्थिपंजर, अज्ञातलिपि के लेख, मुद्राएं, मोहरे, मिट्टी के बर्तन, बहुमुल्य गहने, मनके, मूर्तियां, खिलौने, कुँए, स्नानागार, किला, सुव्यवस्थित गलियां, चौराहें व नालियां यहां के थेहड़ों से से प्राप्त हुए।
पूर्व-हड़प्पा कालीन कालीबंगा:
हड़प्पा सभ्यता लगभग 5,000 वर्ष पुरानी है, कालीबंगा और राखीगढ़ी की खुदाई में मिले वस्तुओं के नमूने स्पष्ट रूप से यह प्रमाणित करते हैं कि ईसा के जन्म के तीन हजार वर्ष पूर्व भारत एक संपन्न विकसित देश था और साज सिंगार के साथ अनेक वस्तुओं का उस समय निर्यात होता था। खुदाई के दौरान मिली वस्तुओं में से कुछ निम्न:
टेराकोटा या मिट्टी के बर्तन:
कालीबंगा में पूर्व-हड़प्पा कालीन खाने की थालीयाँ, कुंड़े, नीचे से पतले ऊपर से प्याले नुमा गिलास, लोटे, चषक और संचयन के लिये टेराकोटा या मिट्टी के बर्तन मिले हैं। इन मिट्टी के बर्तनों में कई सादे और कुछ चित्रकारी किये हुये हैं। इन को आकार, चित्रकारी और पाये जानेवाले स्थान के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे घरेलू, धार्मिक और समाधी या दफनाने के लिये प्रयोग में आने वाली वस्तुएं। पूर्व-हड़प्पा मिट्टी के बर्तनों में कई सादे और कुछ चित्रकारी किये हुये हैं, इन बर्तनों के विशिष्ट लक्षण निम्न हैं:
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- ये बर्तन कुम्हार के चाक पर बने होने के बावजूद भी लापरवाही से बने हुये लगते हैं। कुछ बर्तनों में बहुत सुधार मिलता हैं लेकिन सभी पात्र ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे कि जानबूझ कर उन के निचले आधे भाग को मोटा कर दिया गया हो।
- लाल पृष्ठभूमि पर फूल, जानवरों को काले रंग में चित्रित किया गया हैं। इन में से कई पर हल्के-काले रंग की आकृतियाँ भी शामिल हैं, जिन्हें अधिक उभारने के लिये सफेद रेखाओं का प्रयोग किया गया है। आकृतियों में अर्धवृत्त, जाली, कीड़े, फूल, पत्ते, पेड़ इत्यादि पसंदीदा रूपांकन थे।
- काले और लाल रंग के बरतनों पर फूलो और मछली, बत्तख, कछुआ और हरिण आदि जानवरों की आकृतियाँ चित्रित की गई हैं।
- इसमें कुछ पर तिरछी रेखायें या अर्धवृत्त चित्रित हैं, जबकि अधिकांश बर्तन सादे हैं और इनमें से कुछ मोटे और मजबूत भी हैं।
- कुछ बर्तन सुघडाई से बने हुये, चिकने और हलके नीले रंग की आभा लिये हुये हैं। कुछ बर्तन हल्के रंग के और कुछ भूरे रंग के हैं। ये अब तक के मिले पूर्व-हड़प्पा कालीन बर्तनों में से सबसे अच्छे परिमार्जित बर्तन हैं।
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पत्थर से बनी वस्तुयें:
खुदाई में पत्थरो से बनी कई सामग्रीयाँ मिली हैं।
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- पत्थरो से बने बर्तन जिन पर आकृतीयाँ उत्कीर्ण की हुई हैं।
- शतरंज के खिलौने नुमा प्यादे,
- गेदें, चक्की और मूसल शामिल हैं।
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शस्त्र :
तांबे के शस्त्र, कुल्हाड़ी, छैनी, भाला, नोंक वाला बरछा, चकमक से बनी छुरीयाँ और हड्डी के नुकीले टुकड़े मिले हैं।
टेराकोटा या मिट्टी के खिलौने और आकृतियाँ:
कालीबंगा में मिट्टी की अनेक सामग्री मिली हैं, जिन्हें आग में पका कर बनाया गया था।
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- पशु, मानव, देवी मुद्रा प्रतिमायें,
- कालीबंगा की सबसे अच्छी टेराकोटा प्रतिमा एक आक्रमक बैल है जिसे “हड़प्पा युग की यथार्थवादी और शक्तिशाली लोक कला” का प्रतीक माना जा सकता है।
- कालीबंगा में खिलौना-गाड़ी, पहिया और टूटा हुआ बैल; जिस से यह झात होता हैं कि कालीबंगा में गाड़ियां परिवहन के लिए उपयोग की जाती थीं।
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योरोपियन मत यह हैं कि तिल्ली वाले पहिये का उपयोग भारत में नहीं होता था। लेकिन यह मानना गलत होगा कि हड़प्पा वासियों ने तिल्ली वाले पहिये का उपयोग नहीं किया। देश की गर्म और आर्द्र जलवायु जो समय के दौरान सभी कार्बनिक पदार्थों को नष्ट कर देती है। ऐसे हलात में लकड़ी के पहियों के अवशेषों की अपेक्षा करना बहुत अधिक होगा। खुदाई में पाए गए टेराकोटा नमूनों पर, पहिये को केंद्र से परिधि तक विकिरणित चित्रित रेखाओं द्वारा दिखाया गया है, जबकि दूसरे नमूने में ये कम उभरे हुये हैं। यह एक तकनीक हैं जो सदियों से अभी तक चली आ रही हैं। नमूने स्पष्ट रूप से यह प्रमाणित करते हैं कि कालीबंगा के लोग तिल्ली वाले पहिया से पूरी तरह परिचित थे।
बांट:
खुदाई के दौरान कई वजन मापने के बांट-बांटकरी मिले हैं।
आभूषण:
कालीबंगा में खुदाई के दौरान अनेक अर्घ मूल्यवान पत्थर से बने आभूषण मिले हैं।
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- स्फटिक और गोमेद से बनी छोटी पत्तीयाँ कुछ जड़ी हुई और कुछ दाँतेदार,
- सेलखड़ी, सीप, इन्द्रगोप, टेराकोटा और तांबे के मोती
- तांबे, सीप,काँच, हड्डी,स्वर्ण से बनी अंगूठी, माला और आभूषण
- टेराकोटा से बनी चूड़ियाँ
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यहाँ अनेक प्रकार की चूड़ियाँ मिली हैं जो यह इंगित करती हैं कि यह शहर टेराकोटा चूड़ियों के लिए जाना जाता होगा। इन सबको देखते हुये यह निष्कर्ष निकलता हैं कि यहाँ के लोगों का कलात्मक रूझान रहा होगा और वे श्रृंगार के प्रसाधन निर्यात भी करते होगें।
मुहर:
इस चरण की कई मुहरें, मुहरबंदी, मुद्रा, मिली हैं। इन में से उल्लेखनीय एक बेलनाकार मुहरें है, जिन में आकृति के द्वारा यह दर्शाया गया है:
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- भालो के साथ लड़ते दो पुरुषों के बीच एक महिला आकृति हैं जो संभव हैं धमकी दे रही हो या समझौता करवा रही हो।
- दर्शक के रूप में आधे मानव आधे बैल की आकृतीयाँ बनी हुई है। कहीं पर एक और कही दो आकृतीयाँ है और ये सभी आयताकार हैं।
- सैंधव लिपि में दाहिने से बायें लिखा हैं, जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका हैं।
- गोल नरम पत्थर की मुद्रा पर व्याघ्र या शेर का चित्र अंकित हैं।
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रंगमहल के थेहड़
यह स्थान ठेठ चीनी मिट्टी (सिरेमिक) से बनी वस्तओं के निर्माण के लिए प्रसिद्ध था, जिसे रंग महल वेयर संस्कृति कहा जाता है। यह विशिष्ट मिट्टी के बर्तन कुम्हार के चाक पर बने, लाल या गुलाबी रंग के हैं। बर्तनों में जार और हांडी शामिल हैं जो गोलाकार या अंडाकार हैं जिनके किनारे उठे हुये हैं। कई हांडीयों के किनारे को लहरदार ऊभारा गया हैं। कुछ हांडीयों और फूलदान की गर्दन को काले-लाल रंग की पॉलिश कर के सजावट के लिये चित्रित किया गया है। अन्य प्रकार की वस्तओं में टोंटीदार बर्तन, खाना पकाने के बर्तन, भंडारण जार, विभिन्न किस्मों के कटोरे, दीपक, धूप-दान आदि शामिल हैं। कुछ नक्काशीदार हांडीयों पर वस्त्र के निशान भी मिले हैं। ढाला मिट्टी के बर्तनों में कटोरा और लघु बेसिन प्रमुख है। सांस्कृतिक संयोजन में मूर्तियाँ, टेराकोटा पशु मूर्तियाँ, गाड़ियाँ, पहिये, बाट, गेंदें, मांस- मांस-घिसने वाला पत्थर,पासा, पुटकी टैंकों, कुम्हार की मोहरें, कुदाल, कान के गहने, मूंगा, लैपीस और सीप के मोती, हुंड़ी, घुमने वाली चक्की, मूसल और हड्डी और लोहे की वस्तुएं शामिल हैं।
पल्लू गाँव के थेहड़
हनुमानगढ़ जिले के गाँव पल्लू के बीचोबीच एक प्राचीन थेहड़ बना हुआ है। सन 1917 में इटली के राजस्थानी भाषाविद्ध और पुरावेत्ता डॉ लुई. जी पीओ टैस्सीटोरी ने पल्लू गाँव के पुराने थेहड़ की खुदाई कराई और यहाँ के थेहड़ से अनेक छोटी-बड़ी वास्तु एवं शिल्पकला की अनेक मूर्तियाँ मिली हैं, उसमें प्रमुख हैं पल्लू गाँव के थेहड़ से प्राप्त 11 वीं शताब्दी की दो जैन सरस्वती मूर्तियाँ, जो शिल्पकला का अद्भुत नमूना हैं। इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता हैं कि दो बार ड़ाक विभाग द्वारा इस पर स्टैम्प जारी की गई। उनमें से एक मूर्ति आज राष्ट्रीय संग्राहालय दिल्ली की शोभा बढ़ा रही है तो दूसरी बीकानेर के संग्राहालय की। इन जैन सरस्वती की मूर्तियों से यह अनुमान लगाया जाता है की 11 वीं शताब्दी में पल्लू निवासी जैन धर्म को मानने वाले थे।
राष्ट्रीय संग्राहालय नई दिल्ली में सरस्वती मूर्ति
शिल्प कला की 1.48 मीटर ऊँचाई की अत्यंत दुर्लभ प्रस्तुति, जिसमें देवी सरस्वती की चार-भुजा धारी, दिव्य छवि वाली प्रतिमा अत्यधिक परिष्कृत और नाजुक रूप से सफेद संगमरमर में उकेरी गई हैं, लेकिन समय की मार से इसकी दिव्य सफेदी पीली हो गई हैं। जैन काल में छवियों की प्रतीकात्मक परंपरा है, जिसमें विशेष रूप से ‘प्रभा’ के शीर्ष पर तीर्थंकर की प्रतिमा अधीनस्थ जैन देवताओं की छवियों पर होना अनिवार्य हैं। चार-भुजा धारी सरस्वती एक पूर्ण विकसित पदम्-पुष्प पर आकर्षक त्रिभंग मुद्रा में खड़ी है। उनके हाथों में कमल, बायें हाथ में डोरी से बँधी हुई एक ताड़पत्रीय पोथी, कमंडल और अक्षमाला के साथ निचला दाहिन हाथ में ‘वरद मुद्रा’ में हैं। मूर्ति एक पारदर्शी वस्त्र धारण किये हुये हैं। इसे आभूषणों की एक विस्तृत श्रृंखला से अलंकृत किया गया हैं जो कि आमतौर पर समकालीन चित्रों में पाये जाते हैं, विशेष रूप से बाहों पर के आभूषण, हथेलियों के पीछे की ओर का नाजुक तार और स्तनों की गोलाई को परिभाषित करते हुए आभूषण, लंबी नुकीली उंगलियां और नुकीले नाखून के साथ बहुत ही आकर्षक, असाधारण रूप से साँचे में ढ़ली नाजुक आकृति हैं।
पैरो के पास वीणा और एकतारा जैसा छोटा वाद्य यंत्र बजानेवाली परिचारिकायें और दाता दंपत्ति या तो राजा-रानी या कोई धनी व्यापारी और उसकी पत्नी हो सकते हैं, उनकी आकृति बनी हुई हैं। इसके अलावा प्रतिमा के पैरों के चारो ओर गंधर्व की भूमिका वाली वीणा की क्षतिग्स्त आकृति भी दिखाई देती हैं। इसकी प्रतीकात्मक विशिष्टता को देखते हुये, निश्चित रूप से कहा जा सकता हैं कि वाग्देवी की यह प्रतिमा जैन काल का प्रतिनिधत्व करती हैं। जैन बाहुल्य क्षेत्र से प्राप्त यह मूर्ति चौहान काल की एक उत्कृष्ट कृति मानी जाती हैं।देश को गौरवान्वित करने वाली दुर्लभ शिल्प कला नई दिल्ली के संग्रहालय में से एक हैं।
बीकानेर संग्राहालय में जैन सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति
बीकानेर संग्रहालय में भी पल्लू गाँव से प्राप्त मूर्ति सफेद संगमरमर की बनी जैन सरस्वती वाग्देवी की हैं। मुख्य मूर्ति नई दिल्ली के संग्रहालय की मूर्ति से काफी समानता रखती हैं।किंतु दाहिने और पार्श्व भाग में परिचारिकाओं के ऊपर एक-एक लघु आकृति बनी हुई हैं। इस मूर्ति के दोनो ओर पार्श्व में अंलकृत संतभों और तोरण से सज्जित हैं। तोरण के शीर्ष भाग मे मंदिर के तीन आले वने हुये हैं। यह मूर्ति बहुत ही सुंदर हैं। ये दोनो जैन सरस्वती प्रतिमायें राजस्थान के मघ्यकाल की उतकृष्ट कृतियाँ हैं। यहाँ अनेक मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुये हैं लेकिन ये दोनो मूर्तियाँ शिल्पकला का अद्भुत नमूना हैं।
पुरातात्विक लिहाज से थेहड़ एक धरोहर है जिसकी खुदाई की जाए तो बहुत सी प्राचीन जानकारियां उपलब्ध हो सकती हैं। यदि इसके थेहड़ों का खनन किया जाएं तथा उनमें से प्राप्त वस्तुओं की आयु का आंकलन किया जाय तो थेहड़ों वाले इलाके प्राचीनता प्रकट होगी तथा इसके क्रमिक उत्थान पतन का ज्ञान हो सकेगा।
- चालसेडोनी: एक प्रकार का चमकीला पारदर्शी बिल्लौर पत्थर जिसे स्फटिक कहा जाता हैं । इसमें अनेक रंग, प्रकार और आकार पाये जाते हैं।
- कार्नीलियन: लाल से भूरे के बीच के वर्ण का स्फटिक, जो कि कुछ सख्त एवं गहरा होता है। जिसे इन्द्रगोप कहते हैं।
- स्टीटाइट: एक नरम भारी सघन सिलखड़ी (टैल्क) की किस्म है जो एक साबुन की तरह लगता है और यह सिगड़ी, भट्ठी घर और मेज़ का ऊपरी भाग और गहने बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं।
संदर्भ:
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- http://www.nationalmusuemindia.gov.in/prodCollecions
- https://www.rajasthanhistory.com/blog-detail/?pn=40
- https://bhatakna.wordpress.com/2014/06/16/kalibangan-harappan-site-in-india/
- जगदीश मनीराम साहू (निवासी ढाणी छिपोलाइ )
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Archaeological importance of Hanumangarh
Hanumangarh district of Rajasthan state has a significant archaeological importance. This is that district where excavations revealed that it was the centre of the most ancient River Valley Civilization, which glorifies a thousand year old rich culture. There are more than a 100 Thehads in this district where the remains of the ancient culture lie buried. The sculptures, coins and other objects found here reveal that this area has been influenced by the cultural and economic and social upheaval of the culture of different periods of time.
Pallu, Dhansia, Karoti, Soti, Pandusar, Sonadi, Thirana, Rawatsar, Ladam, Mandarpura, Jabrasar, Bhomani Dhani, Bhukarka, Birkali, Sirangsar, Khoda, Nyolki, Dhandusar, Bisrasar, Hanumangarh, Munda, Masani, Gangagarh, Gangagarh Makkasar, Sahajipura, Bahlol Nagar, Dulmana, Rangmahal, Baropal, Dablirathan and Kalibanga, etc.. are such villages where the Thehads are built.
The remains found from excavations at Kalibanga reveal that there existed an ancient civilization older than the Nile, Volga and Indus Valley Civilizations. The excavation reveals the Ashtamunikar skeleton, epigraphic articles, coins, seals, mud pots, precious ornaments, beads, statues, toys, wells, bathrooms, fortresses, well-maintained lanes, village squares and drains and many more such things that have been described in Mahabharat.
Pre-Harappa period Kalibanga:
The Harappan Civilization is about 5,000 years old. The objects found in the excavations of Kalibanga and Rakhigarhi clearly prove that three thousand years before the birth of Christ, India was a prosperous, developed country and along with cosmetic items, many other objects too were exported.
Some of the items found during the excavation are listed below:
Terracotta or Earthenware:
In Kalibanga, Pre-Harappan time dinner plates, bowls, cup-style glasses with thin bottoms, small pots, teaspoons and terracotta or earthen storage utensils have also been found. Some articles were plain but some were artistically painted. They can all be classified according to their sizes, paintings and the places where they were found; such as objects to be used in households, in religious matters, meditative objects or objects used for burial. Following are the main characteristics of the utensils of the pre-Harappa period:
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- These utensils seem to have been made carelessly although the potter’s wheel was used to make them. Some utensils show marked improvement yet what is commonly seen in all of them is that they all seem to have deliberately thickened bottoms.
- On red backgrounds flowers and animals have been depicted with black colour. On many of them images can be found, painted in light, shaded black colour but enhanced with outlines made in white. These shaded black images include semi-circles, lattices, insects, flowers, leaves, trees, etc… as per the preference of the artist.
- Flowers, fish, duck, animals like tortoise and deer, etc… are depicted on the vessels painted black and red.
- Some have oblique lines and semicircles painted on them, while most of the utensils are plain and some of them are thick and strong too.
- Some utensils are smooth and reflect a light blue tinge. Some pots are light in colour and some are brown. Among all the Pre-Harappan period utensils found so far these are by far the most refined ones.
Items made of stone:
Many stone items have been found in these excavations.
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- Pots made of stone on which the figures have been printed.
- Chess toys namely, pawns
- Balls, mortars and pestles have also been found.
Weapons:
Copper weapons, axe, chisel, spear, sharp lances, flint knives and sharp pieces of bone have been found.
Terracotta or clay toys and figures:
A number of clay items, strengthened and hardened in fire, are found in Kalibanga.
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- Animals, humans, statues with poses of Goddesses,
- The best terracotta statue in Kalibanga is an offensive bull which can be considered a symbol of “the realistic and powerful folk art” of the Harappan era.
- Toy-carts, wheels and a broken bull give evidence that bullock carts were used for transportation in Kalibanga.
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The European view is that wheels with spokes were not used in India. But it would be incorrect to assume that the Harappans did not use such wheels. Our country’s hot and humid climate destroys all organic matter in the course of time. In such a situation it would be too much to expect to find the remains of wooden wheels. On terracotta specimen found in the excavations at Kalibanga and Rakhigarhi, the wheel is characterized by painted lines radiating from the centre to the periphery, while in other findings their protrusion is reduced. This is a technique that is being followed from centuries. These specimen clearly prove that the people of Kalibanga were fully familiar with the spoked wheel.
Weights (measuring unilts):
During the excavation, numerous weight measures have been found.
Ornaments:
During the excavation at Kalibanga, many ornaments made with semi-precious stones have been found.
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- Small leaves made of rhinestone and onyx, some studded and some serrated,
- Steatite, carnelian, chalcedony, shell, terracotta and copper beads
- Rings, necklaces and other jewels made of copper, shell, glass, bone and gold
- Bangles made of terracotta
Several types of bangles have been found here, indicating that the town may have been known for terracotta bangles. Looking at all of this, one can conclude that the people of this place must have had an artistic attitude and they must have been exporting cosmetics and beauty products.
Seal:
Many seals and coins of this period have been found. Notable among these are cylindrical seals with figures that denote the following:
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- A female figure between two men fighting with spears, possibly trying to threaten or maybe make truce between them.
- Half-human half-bull figures that look like spectators. Somewhere there is one and somewhere there are two figures and most of them are rectangular.
- The script used is Saindhav which writes from right to left; it is yet to be encrypted.
- Round, soft stone coins are engraved with figures of tigers or lions.
The Thehads of Rang Mahal
This place was famous for the production of ceramic items which are called Rang Mahal ware culture. These distinct earthen pots are made on a potter’s wheel and are either red or pink in colour. These utensils include jars and pots with raised edges are either circular or oval in shape. The edges of many pots are wavy. The neck of some pots and vases have been polished with black-red colour and then decorated with pictures. The other types of items include spouted utensils, cooking utensils, storage jars, a variety of bowls, lamps, incense-stands, etc. Some carved pots have markings of cloth. Significant in moulded mud vessels are bowls and miniature basins. Cultural assemblages include statues, terracotta animal figurines, carts, wheels, weight measures, balls, meat-weft-stones, dice, potters’ seals, hoe, ear-jewels and beads of coral, lapis and shell, money banks, rotating mills, pestles and also bone and iron articles.
The Thehads of Pallu Village
In the centre of village Pallu in Hanumangarh district is an ancient thehad. In 1917, a Rajasthani philanthropist and archaeologist, Dr. Louis Tassitori of Italy excavated the old thehad of Pallu and found numerous small and big Vastu and sculptural statues. Significant among the find from the Pallu thehad were two 11th century Jain Saraswati statues which are examples of the exquisite craftsmanship of that era. Because of this uniqueness the Postal Department has issued stamps twice with these figures. Today, one of the statues is adding glory to the National Museum of New Delhi, while the other is on display in the Bikaner Museum. With the findings of these two statues it may be estimated that in the 11th Century the residents of Pallu were following Jainism.
Saraswati statue at The National Museum, New Delhi
An extremely rare presentation, with a height of 1.48 meters, this four-armed, divine image of Goddess Saraswati is highly sophisticated and delicately carved in white marble, but its celestial whiteness has become yellow with time. The Jain Period followed a symbolic tradition in their imagery where it was a must to place images of Tirthankaras on top of the heads of the ‘Prabha’ of minor deities. This four-armed Saraswati stands in an attractive, triangular pose on a fully bloomed lotus flower. In her hands she holds a lotus, tied with a string to left hand is a palm leaf manual, the lower right hand holds a rosary of beads and an oblong water pot and is in the pose of showering grace. The idol wears a transparent garment. It is adorned with a wide range of ornaments that are commonly found in contemporary paintings, especially the jewels on the arms, the delicate strings on the back of the palms, the jewels defining the roundness of the breasts and the long pointed fingers with sharp nails. It is an extraordinary, extremely attractive, delicately moulded figure.
Near her feet are figures of two female attendants who play small instruments like the Veena and the Ekatara, a donor couple or maybe a king and a queen or a wealthy businessman and his wife. Apart from this, a damaged image of a celestial Veena can also be seen around the feet of the statue. Looking at its symbolic distinction, it can be asserted with certainty that this statue of the Goddess of Speech is a representation of the Jain period. It is considered a masterpiece of the Chauhan period. Being one-of-its-kind, this rare piece of art is a pride of The National Museum, New Delhi.
Statue of Jain Saraswati (Vagdevi) in Bikaner Museum
A Jain Saraswati Vagdevi, made of white marble, housed in the Bikaner Museum is another statue acquired from the excavations in Pallu village. The main statue bears a close resemblance to the one in the museum of New Delhi. But on the right and left sides, there are female attendants on whom are etched miniature figures, one on each attendant. The statue is adorned on both sides with carved pillars and archways. On the top-most part of the archway are three tiers similar to those found in temples. This statue is very beautiful. Both these Jain Saraswati statues are exquisite creations of the middle period of Rajasthan. The remains of many idols have been discovered here, but both these figures are specimens of excellent craftsmanship.
From an archaeological point of view, Thehads are a heritage, which, if excavated, can reveal a lot of ancient information. If the items found here are mined and carbon tested to know which age they are from, then they will reveal their exact period and also the rise and fall of this ancient civilization.
Note:
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- Chalcedony: A type of shiny, transparent black stone, also known as rhinestone. This stone is found in many colours, types and sizes.
- Carnelian: A rhinestone of a colour between red and brown, which is a little hard and dark. It is also called Indragop.
- Steatite: A soft, heavy, dense alabaster (talc) variety that resembles soap and is used to make stoves, furnaces, table tops and ornaments.
Reference:
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- Google search
- wikipedia
- rajasthan-state-archives-bikaner
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- ·Jagdish Maniram Sahu (resident Dhani Chhoolai)
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Hanumaanagadh jile ka puraataatvik mahatv
raajasthaan raajy ka hanumaanagadh jile ka puraataatvik drshti se khaasa mahatv hain. hanumaanagadh hee vah jila hai jahaan huee khudaee se ati praacheen nadee ghaatee sabhyata ka kendr hone ka pata chala hain, jo hajaaron saal puraanee samaddh sanskrti ko mahima mandit karatee hain . is jile mein 100 se adhik thehad hain jahaan praacheen sanskrti ke avashesh dabe pade hain. yahaan se praapt moortiyaan sikke tatha any vastuain yah pramaanit karatee hain yah ilaaka vibhin kaalon kee sanskrti ka poshak aur raajanaitik, aarthik evan saamaajik uthal puthal se prabhaavit raha hain.
palloo, dhaanasiya, karoti, sotee, paandoosar, sonadee, thiraana, raavatasar, laadam, mandarapura, jabaraasar, bhomiyon kee dhaanee, bhookaraka, birakaalee, sirangasar, khoda, nyolakee, dhaandhoosar, bisaraasar, hanumaanagadh, munda, masaanee, gangaagadh, rohee, makkaasar, sahajeepura, bahalol nagar, dulamaana, rangamahal, badopal, dabaleeraathaan aur kaaleebanga aadi aise gaanv hai jahaan thehad bane huye hain. kaaleebanga mein khudaee se praapt hue avasheshon se pata chala ki yahaan nil, volga aur sindhu ghaatiyon se bhee praacheen sabhyata thee. mahaabhaarat mein varnit ashthamunikaar maanaveey asthipanjar, agyaatalipi ke lekh, mudraen, mohare, mittee ke bartan, bahumuly gahane, manake, moortiyaan, khilaune, kune, snaanaagaar, kila, suvyavasthit galiyaan, chauraahen va naaliyaan yahaan ke thehadon se se praapt hue.
Poorv-hadappa kaaleen kaaleebanga:
hadappa sabhyata lagabhag 5,000 varsh puraanee hai, kaaleebanga aur raakheegadhee kee khudaee mein mile vastuon ke namoone spasht roop se yah pramaanit karate hain ki eesa ke janm ke teen hajaar varsh poorv bhaarat ek sampann vikasit desh tha aur saaj singaar ke saath anek vastuon ka us samay niryaat hota tha. khudaee ke dauraan milee vastuon mein se kuchh nimn:
Teraakota ya mittee ke bartan:
kaaleebanga mein poorv-hadappa kaaleen khaane kee thaaleeyaan, kunde, neeche se patale oopar se pyaale numa gilaas, lote, chashak aur sanchayan ke liye teraakota ya mittee ke bartan mile hain. in mittee ke bartanon mein kaee saade aur kuchh chitrakaaree kiye huye hain. in ko aakaar, chitrakaaree aur paaye jaanevaale sthaan ke aadhaar par vargeekrt kiya ja sakata hai, jaise ghareloo, dhaarmik aur samaadhee ya daphanaane ke liye prayog mein aane vaalee vastuen. poorv-hadappa mittee ke bartanon mein kaee saade aur kuchh chitrakaaree kiye huye hain, in bartanon ke vishisht lakshan nimn hain:
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- ye bartan kumhaar ke chaak par bane hone ke baavajood bhee laaparavaahee se bane huye lagate hain. kuchh bartanon mein bahut sudhaar milata hain lekin sabhee paatr aise prateet hote hain jaise ki jaanaboojh kar un ke nichale aadhe bhaag ko mota kar diya gaya ho.
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- kaale aur laal rang ke baratanon par phoolo aur machhalee, battakh, kachhua aur harin aadi jaanavaron kee aakrtiyaan chitrit kee gaee hain.
- isamen kuchh par tirachhee rekhaayen ya ardhavrtt chitrit hain, jabaki adhikaansh bartan saade hain aur inamen se kuchh mote aur majaboot bhee hain.
- kuchh bartan sughadaee se bane huye, chikane aur halake neele rang kee aabha liye huye hain. kuchh bartan halke rang ke aur kuchh bhoore rang ke hain. ye ab tak ke mile poorv-hadappa kaaleen bartanon mein se sabase achchhe parimaarjit bartan hain.
patthar se banee vastuyen:
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- khudaee mein pattharo se banee kaee saamagreeyaan milee hain.
- pattharo se bane bartan jin par aakrteeyaan utkeern kee huee hain.
- shataranj ke khilaune numa pyaade,
- geden, chakkee aur moosal shaamil hain.
shastr :
taambe ke shastr, kulhaadee, chhainee, bhaala, nonk vaala barachha, chakamak se banee chhureeyaan aur haddee ke nukeele tukade mile hain.
Teraakota ya mittee ke khilaune aur aakrtiyaan:
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- kaaleebanga mein mittee kee anek saamagree milee hain, jinhen aag mein paka kar banaaya gaya tha.
- pashu, maanav, devee mudra pratimaayen,
- kaaleebanga kee sabase achchhee teraakota pratima ek aakramak bail hai jise “hadappa yug kee yathaarthavaadee aur shaktishaalee lok kala” ka prateek maana ja sakata hai.
- kaaleebanga mein khilauna-gaadee, pahiya aur toota hua bail; jis se yah jhaat hota hain ki kaaleebanga mein gaadiyaan parivahan ke lie upayog kee jaatee theen.
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yoropiyan mat yah hain ki tillee vaale pahiye ka upayog bhaarat mein nahin hota tha. lekin yah maanana galat hoga ki hadappa vaasiyon ne tillee vaale pahiye ka upayog nahin kiya. desh kee garm aur aardr jalavaayu jo samay ke dauraan sabhee kaarbanik padaarthon ko nasht kar detee hai. aise halaat mein lakadee ke pahiyon ke avasheshon kee apeksha karana bahut adhik hoga. khudaee mein pae gae teraakota namoonon par, pahiye ko kendr se paridhi tak vikiranit chitrit rekhaon dvaara dikhaaya gaya hai, jabaki doosare namoone mein ye kam ubhare huye hain. yah ek takaneek hain jo sadiyon se abhee tak chalee aa rahee hain. namoone spasht roop se yah pramaanit karate hain ki kaaleebanga ke log tillee vaale pahiya se pooree tarah parichit the.
baant:
khudaee ke dauraan kaee vajan maapane ke baant-baantakaree mile hain.
aabhooshan: kaaleebanga mein khudaee ke dauraan anek argh moolyavaan patthar se bane aabhooshan mile hain.
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- sphatik aur gomed se banee chhotee patteeyaan kuchh jadee huee aur kuchh daantedaar,
- selakhadee, seep, indragop, teraakota aur taambe ke motee
- taambe, seep,kaanch, haddee,svarn se banee angoothee, maala aur aabhooshan
- teraakota se banee choodiyaan
yahaan anek prakaar kee choodiyaan milee hain jo yah ingit karatee hain ki yah shahar teraakota choodiyon ke lie jaana jaata hoga. in sabako dekhate huye yah nishkarsh nikalata hain ki yahaan ke logon ka kalaatmak roojhaan raha hoga aur ve shrrngaar ke prasaadhan niryaat bhee karate hogen.
Muhar:
is charan kee kaee muharen, muharabandee, mudra, milee hain. in mein se ullekhaneey ek belanaakaar muharen hai, jin mein aakrti ke dvaara yah darshaaya gaya hai:
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- bhaalo ke saath ladate do purushon ke beech ek mahila aakrti hain jo sambhav hain dhamakee de rahee ho ya samajhauta karava rahee ho.
- darshak ke roop mein aadhe maanav aadhe bail kee aakrteeyaan banee huee hai. kaheen par ek aur kahee do aakrteeyaan hai aur ye sabhee aayataakaar hain.
- saindhav lipi mein daahine se baayen likha hain, jise abhee tak padha nahin ja saka hain.
- gol naram patthar kee mudra par vyaaghr ya sher ka chitr ankit hain.
Rangamahal ke thehad :
yah sthaan theth cheenee mittee (siremik) se banee vaston ke nirmaan ke lie prasiddh tha, jise rang mahal veyar sanskrti kaha jaata hai. yah vishisht mittee ke bartan kumhaar ke chaak par bane, laal ya gulaabee rang ke hain. bartanon mein jaar aur haandee shaamil hain jo golaakaar ya andaakaar hain jinake kinaare uthe huye hain. kaee haandeeyon ke kinaare ko laharadaar oobhaara gaya hain. kuchh haandeeyon aur phooladaan kee gardan ko kaale-laal rang kee polish kar ke sajaavat ke liye chitrit kiya gaya hai. any prakaar kee vaston mein tonteedaar bartan, khaana pakaane ke bartan, bhandaaran jaar, vibhinn kismon ke katore, deepak, dhoop-daan aadi shaamil hain. kuchh nakkaasheedaar haandeeyon par vastr ke nishaan bhee mile hain. dhaala mittee ke bartanon mein katora aur laghu besin pramukh hai. saanskrtik sanyojan mein moortiyaan, teraakota pashu moortiyaan, gaadiyaan, pahiye, baat, genden, maans- maans-ghisane vaala patthar,paasa, putakee tainkon, kumhaar kee moharen, kudaal, kaan ke gahane, moonga, laipees aur seep ke motee, hundee, ghumane vaalee chakkee, moosal aur haddee aur lohe kee vastuen shaamil hain.
Pallu gaanv ke thehad :
hanumaanagadh jile ke gaanv palloo ke beechobeech ek praacheen thehad bana hua hai. san 1917 mein italee ke raajasthaanee bhaashaaviddh aur puraavetta do luee. jee peeo taisseetoree ne palloo gaanv ke puraane thehad kee khudaee karaee aur yahaan ke thehad se anek chhotee-badee vaastu evan shilpakala kee anek moortiyaan milee hain, usamen pramukh hain palloo gaanv ke thehad se praapt 11 veen shataabdee kee do jain sarasvatee moortiyaan, jo shilpakala ka adbhut namoona hain. isaka andaaj isee se lagaaya ja sakata hain ki do baar daak vibhaag dvaara is par staimp jaaree kee gaee. unamen se ek moorti aaj raashtreey sangraahaalay dillee kee shobha badha rahee hai to doosaree beekaaner ke sangraahaalay kee. in jain sarasvatee kee moortiyon se yah anumaan lagaaya jaata hai kee 11 veen shataabdee mein palloo nivaasee jain dharm ko maanane vaale the.
Raashtreey sangraahaalay naee dillee mein sarasvatee moorti:
shilp kala kee 1.48 meetar oonchaee kee atyant durlabh prastuti, jisamen devee sarasvatee kee chaar-bhuja dhaaree, divy chhavi vaalee pratima atyadhik parishkrt aur naajuk roop se saphed sangamaramar mein ukeree gaee hain, lekin samay kee maar se isakee divy saphedee peelee ho gaee hain. jain kaal mein chhaviyon kee prateekaatmak parampara hai, jisamen vishesh roop se prabha ke sheersh par teerthankar kee pratima adheenasth jain devataon kee chhaviyon par hona anivaary hain. chaar-bhuja dhaaree sarasvatee ek poorn vikasit padam-pushp par aakarshak tribhang mudra mein khadee hai. unake haathon mein kamal, baayen haath mein doree se bandhee huee ek taadapatreey pothee, kamandal aur akshamaala ke saath nichala daahin haath mein varad mudra mein hain. moorti ek paaradarshee vastr dhaaran kiye huye hain. ise aabhooshanon kee ek vistrt shrrnkhala se alankrt kiya gaya hain jo ki aamataur par samakaaleen chitron mein paaye jaate hain, vishesh roop se baahon par ke aabhooshan, hatheliyon ke peechhe kee or ka naajuk taar aur stanon kee golaee ko paribhaashit karate hue aabhooshan, lambee nukeelee ungaliyaan aur nukeele naakhoon ke saath bahut hee aakarshak, asaadhaaran roop se saanche mein dhalee naajuk aakrti hain. pairo ke paas veena aur ekataara jaisa chhota vaady yantr bajaanevaalee parichaarikaayen aur daata dampatti ya to raaja-raanee ya koee dhanee vyaapaaree aur usakee patnee ho sakate hain, unakee aakrti banee huee hain. isake alaava pratima ke pairon ke chaaro or gandharv kee bhoomika vaalee veena kee kshatigst aakrti bhee dikhaee detee hain. isakee prateekaatmak vishishtata ko dekhate huye, nishchit roop se kaha ja sakata hain ki vaagdevee kee yah pratima jain kaal ka pratinidhatv karatee hain. jain baahuly kshetr se praapt yah moorti chauhaan kaal kee ek utkrsht krti maanee jaatee hain.desh ko gauravaanvit karane vaalee durlabh shilp kala naee dillee ke sangrahaalay mein se ek hain.
Beekaner sangraahaalay mein jain sarasvatee vaagdevee kee moorti
beekaaner sangrahaalay mein bhee palloo gaanv se praapt moorti saphed sangamaramar kee banee jain sarasvatee vaagdevee kee hain. mukhy moorti naee dillee ke sangrahaalay kee moorti se kaaphee samaanata rakhatee hain.kintu daahine aur paarshv bhaag mein parichaarikaon ke oopar ek-ek laghu aakrti banee huee hain. is moorti ke dono or paarshv mein anlakrt santabhon aur toran se sajjit hain. toran ke sheersh bhaag me mandir ke teen aale vane huye hain. yah moorti bahut hee sundar hain. ye dono jain sarasvatee pratimaayen raajasthaan ke maghyakaal kee utakrsht krtiyaan hain. yahaan anek moortiyon ke avashesh praapt huye hain lekin ye dono moortiyaan shilpakala ka adbhut namoona hain. puraataatvik lihaaj se thehad ek dharohar hai jisakee khudaee kee jae to bahut see praacheen jaanakaariyaan upalabdh ho sakatee hain. yadi isake thehadon ka khanan kiya jaen tatha unamen se praapt vastuon kee aayu ka aankalan kiya jaay to thehadon vaale ilaake praacheenata prakat hogee tatha isake kramik utthaan patan ka gyaan ho sakega.
Note:
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- chaalasedonee: ek prakaar ka chamakeela paaradarshee billaur patthar jise sphatik kaha jaata hain . isamen anek rang, prakaar aur aakaar paaye jaate hain.
- kaarneeliyan: laal se bhoore ke beech ke varn ka sphatik, jo ki kuchh sakht evan gahara hota hai. jise indragop kahate hain.
- steetait: ek naram bhaaree saghan silakhadee (tailk) kee kism hai jo ek saabun kee tarah lagata hai aur yah sigadee, bhatthee ghar aur mez ka ooparee bhaag aur gahane banaane ke lie istemaal kiya jaata hain.
Sandarbh:
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- Google search
- wikipedia
- rajasthan-state-archives-bikaner
- http://www.nationalmusuemindia.gov.in/prodCollecions
- https://www.rajasthanhistory.com/blog-detail/?pn=40
- https://bhatakna.wordpress.com/2014/06/16/kalibangan-harappan-site-in-india/
- Jagdish Maniram Sahu (resident Dhani Chhoolai)
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